खेल का खूबसूरत मैदान है - 'यह जगत ’.
जहां प्रत्येक व्यक्ति खेल रहा है सदियों से .
कुछ सीख रहे और कर रहें है अपनी तैयारी
पाने को मेडल - ट्राफी. बन जाने को सरताज ….
गगन में छा जाने को, वे बेकरार हैं आज ..
किसी-किसी को मिल जाती है – एंट्री
यहाँ पिछले चोर दरवाजे से तो किसी का
श्रम, परिश्रम और श्वेद भी है - नाकाफी .
ये हैं मैदान में उग आये कुछ अवांछित ‘कैक्टस’..
किसी के लिए ‘सौन्दर्य’, किसी के लिए ‘विभीषिका’.
लेकिन फिर भी है जीतने की – ‘दुर्घर्ष जिजीविषा ’.
मन में लिए एक विश्वास, दे रहा श्वेद का – ‘हव्य’.
उसके सामने हैं उदाहरण - ‘ध्रुव’ और ‘एकलव्य ’.
अरे ! वह जीत सकता है, और जिता भी सकता है;
अकेले दम – ‘बाजी’, ‘ट्राफी’, ‘सबसे बड़ी ट्राफी ’.
प्रत्येक खेल की होती है – कुछ ‘विशिष्टताएं’,
होते हैं विधान, नियम, और औपचारिकताएं ...
यदि खेल खेला जाय उन्ही नियमो से, विधान से ,
उसमे उल्लास है, उत्साह है .उमंग है, ..आनंद है …
परन्तु किया यदि उलंघन उन नियमों का
तो मिटेगा– सौहार्द्र, और छिड़ेगा संघर्ष .
यह तो मानव बुद्धि की है अपनी निजी स्वतंत्रता …
खेलता है जीवन का खेल – ‘नियमों से’ या
बिगाड़ता है मजा - खेल का, आनंद का . ..
यह जगत, यह प्रकृति एक ओर है - सरस
“रसो वै सः”, मधुरं और सुकोमल तो
दूसरी ओर है –“महाभयम वज्रमुद्यतम” भी .
अब है हमारी स्वतंत्रता की परीक्षा की घडी ,
करते हैं चयन किसका - जब खेलते हैं खेल?
संग विज्ञान के, प्रकृति के, संस्कृति के...?
नववर्ष में हमें करना है – एक ‘संकल्प’;
खेलेंगे जरूर ‘खेल जिंदगी का’ क्योकि ,
नहीं है कोई इसका – ‘विकल्प’.
कोई फर्क नहीं पड़ता यहाँ– ‘जर्सी का’
वह लाल हो या पीली, हरी हो या नीली.
वह अध्यात्म की हो, या विज्ञान की ,
किसी संतरी की हो या किसी मंत्री की.
यहाँ शर्त बस एक ही है, बस एकही
खुला रखेंगे दरवाजा - ‘बुद्धि का’,
झरोखा ‘ज्ञान का’, खिड़की ‘विवेक की ’.
नहीं होगा वहाँ कोई ‘झीना’ पर्दा भी ;
किसी ‘भ्रम का’,‘विभ्रम का’,‘लोभ का’…
लोभ का पर्दा हटा कर जीवाज जीने की सलाह बहुत अच्छी है. और गलत रास्ता या short cut छोड़ कर सही रास्ते पर चलने में प्रभु हमारी सहायता करे....
ReplyDeleteसभी को नव-वर्ष की मंगलकामनाएं.
आपको भी नये वर्ष में शुभकामनायें।
ReplyDeleteनववर्ष में हमें करना है – एक ‘संकल्प’;
ReplyDeleteखेलेंगे जरूर ‘खेल जिंदगी का’ क्योकि ,
नहीं है कोई इसका – ‘विकल्प’..
सच कहा है ... जीवन है तो पूरा खेलना चाहिए ... ईमानदारी से खेलना चाहिए ....
आपको और परिवार में सभी को नव वर्ष मंगलमय हो ...
aadarniy sir
ReplyDeletebahut hi badhiya avam prabhav shali aur ak sashkt rachne,jise bare me jitana likhu kam hi padega.
किसी के लिए ‘सौन्दर्य’, किसी के लिए ‘विभीषिका’.
लेकिन फिर भी है जीतने की – ‘दुर्घर्ष जिजीविषा ’.
मन में लिए एक विश्वास, दे रहा श्वेद का – ‘हव्य’.
उसके सामने हैं उदाहरण - ‘ध्रुव’ और ‘एकलव्य ’.
अरे ! वह जीत सकता है, और जिता भी सकता है;
अकेले दम – ‘बाजी’, ‘ट्राफी’, ‘सबसे बड़ी ट्राफी ’.
sach haiyah to manushhy par nirbhar karta hai ki vo jidgi ka khel kaise khelen.
bahut hi yatharth -parak prastuti
sadar abhivadan----
poonam
सादर प्रणाम,
ReplyDeleteदेर से ही सही पर नववर्ष की हार्दिक बधाई स्वीकार करें !!
**ईश्वर से कामना है की इस वर्ष भी अनवरत आपकी कवितायेँ सुनने और पढने मिले**
प्रणाम श्रीमान ,
ReplyDeleteबहुत सी हार्दिक बधाइयां आपके सुन्दर से ब्लाक की सुन्दर सुन्दर रचनाओ के लिए आपकी रचनाये सुन्दर तो है ही साथ ही साथ सारगर्भित भी, संसार के सुन्दर वातावरण के निर्माण के लिए आप जैसे विचार रखने वाले महा पुरुषो की आज बहुत आवश्यकता है मई अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हु प्रणाम
Thanks & many thanks to all participants for your kind visit and valuable comments please.
ReplyDeleteनववर्ष में हमें करना है – एक ‘संकल्प’;
ReplyDeleteखेलेंगे जरूर ‘खेल जिंदगी का’ क्योकि ,
नहीं है कोई इसका – ‘विकल्प’
जिंदगी का खेल तो खेलना ही होगा..बहुत ही सारगर्भित और प्रेरक रचना. आशा है नव वर्ष में भी आप इसी तरह की उत्कृष्ट रचनाओं से हम सब का मार्गदर्शन करते रहेंगे. सादर