Tuesday, October 26, 2010

कुछ पूछना है मुझे

स्वर्ण और आभूषण में
सागर और लहरों में,
सूर्य और किरणों में
रजनीश और रश्मियों में.
आखिर क्या है - भेद?
और क्या है - अभेद?

आभूषण जो बनता है
स्वर्ण से ही किन्तु
स्वर्णकार और कलाकार
की हथौड़ी खाने के बाद.

लहरें जो उठती है सागर में
ही लेकिन पवन के झकोरों
ज्वार -भाता की हलचल
और उमंगों तरंगों के बाद.

किरने भी आती है धरती पर
सूर्य की चिता जलने के बाद.
रश्मियाँ भी धरा पर आती हैं
हने बार- बार ललचाती है
परन्तु सूर्य किरणों के चन्द्र
सतह से टकराने के बाद.

इनमे पूर्ववर्ती यदि अक्षर है
तो परवर्ती है - शब्द व्यापार.
जो तैयार करता है किसी
साहित्य किसी काव्य का आधार

इसी साहित्य में इसी काव्य में
अपने अस्तित्वपूर्ण अर्थ का विस्तार
पाता है - वह स्वर्ण, वह सागर..,
वह दिनकर वह रजनीश ....
बनकर किसी वागीश का शिष्य.

11 comments:

  1. aadarniya tiwari ji ....bahut sunder rachna ... jab bhi aapki rachna padhti hoon ... ek aseem shanti ka anubhav karti hoon ... aabhaar

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  2. इनमे पूर्ववर्ती यदि अक्षर है
    तो परवर्ती है - शब्द व्यापार.
    जो तैयार करता है किसी
    साहित्य किसी काव्य का आधार

    Beautiful creation !

    .

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  3. किरने भी आती है धरती पर
    सूर्य की चिता जलने के बाद.
    रश्मियाँ भी धरा पर आती हैं
    हने बार- बार ललचाती है
    परन्तु सूर्य किरणों के चन्द्र
    सतह से टकराने के बाद.
    ...sundar chintansheel rachna

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  4. बेहद गहन अभिव्यक्ति।

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  5. sadaa ki tarah yah bhi bahut khubasurat rachna.

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  6. Thanks! Many Many Thanks!! to all learned participants and criticizers. Your criticism are my power, my energy......

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  7. गहन अर्थों को अभिव्यक्त करती सुंदर रचना।

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  8. आभूषण जो बनता है
    स्वर्ण से ही किन्तु
    स्वर्णकार और कलाकार
    की हथौड़ी खाने के बाद
    इन पंक्तियों ने बेहद प्रभावित किया........

    प्रणाम,
    ब्लॉग पर बड़े दिनों बाद आपकी टिपण्णी देखकर बड़ा अच्छा लगा, आपकी आशीर्वाद रुपी टिपण्णी मुझमे उत्साह का संचार करती हैं अतः इसे निरंतर बनाये रखें यही कामना है .....

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  9. भाई महेंद्र जी, भारतीय जी
    बहुत बहुत आभार समालोचना और उत्साह वर्धक टिपण्णी / सुझावों के लिए.

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  10. डॉक्टर साहब,
    हम हमारे ब्लॉग "मनोज" पर हर गुरुवार को एक रचना की समीक्षा करते हैं। कल के आंच (स्तम्भ का नाम) के लिए इस रचना
    तन सावित्री मन नचिकेता
    की अनुमति चाहता हूं।
    सादर,
    मनोज
    कृपया इस मेल पर उत्तर दें
    mr.manojiofs@gmail.com

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  11. डा .सा ;,
    व्यक्तित्व निखार का जो नुस्खा आपने इस कविता के माध्यम से दिया है वह सच में अनुकरणीय है,यदि हम पालन करें तो सच्चे इंसान बन सकते हैं.

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