Monday, September 20, 2010

आत्मोन्नति का मन्त्र

सच को
सच की तरह
कहने का साहस,

और सच को
सच की तरह
सुनने की कला.

यथार्थ को स्वीकार
और दोष को अंगीकार
करने का गुण

जिस दिन
सीख ले मानव
उस दिन नहीं -
तत्क्षण ही

बन जाएगा
वह मानव से
महामानव
समग्र मानव
देव मानव.

क्योकि
वास्तविक कठिनाई
धब्बों की धुलाई
में नहीं है

समस्या के
निराकरण
में भी नहीं है.

कठिनाई तो
धब्बों का
अस्तित्व
स्वीकारने में है

निराकरण को
शिरोधार्य करने में
आनेवाली शर्म और
झुझलाहट का है.


5 comments:

  1. सच को
    सच की तरह
    कहने का साहस,

    और सच को
    सच की तरह
    सुनने की कला.
    सुन्दर जीवन दर्शन। पहली बार आपका ब्लाग देखा । अभिभूत हूँ। धन्यवाद और शुभकामनायें

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  2. आत्मोन्नति का मन्त्र सटीक है ..सुन्दर अभिव्यक्ति के द्वारा ज्ञान देने के लिए आभार

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  3. कठिनाई तो
    धब्बों का
    अस्तित्व
    स्वीकारने में है
    .......बहुत सुन्दर....आपने बहुत सारगर्भित तरीके से मानव चरित्र का चित्रण किया है......आभार...
    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  4. sundarta se sacchi baat kahi hai...
    swikarne ka sahas hi aatmonatti ki sambhavnaon ka janmdata hai!
    regards,

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  5. प्रेरक और उत्साह वर्धक टिप्पणिओं के लिए आभार. आप विचारशीलों के मनोभाव ही मेरी शक्ति है. आशा है सम्बन्ध पूर्ववत बना रहेगा. सभी का एक बार पुनः आभार.

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