Tuesday, September 21, 2010

कविता का वैशिष्ट्य

कविता कोई
चातुर्य नहीं है
शब्दों का.

वह दिल से
निःसृत एक
आवाज है,
एक स्पंदन है;
अभिव्यक्ति है.

यह साज की
मर्जी साथ दे,
या न दे ;

वह साज की
रही नहीं कभी
मोहताज है.

क्योकि साज को
कानों तक पहुचने
के लिए ध्वनि का
सतत साथ चाहिए

परन्तु कविता तो
संकेतो- प्रतीकों से
भी पहुचती है -
गंतव्य तक.

मौन में भी
पहुचाती है
मन के
कोने कोने
तक अपनी
सुमधुर आवाज.

8 comments:

  1. कविता कोई
    चातुर्य नहीं है
    शब्दों का.

    वह दिल से
    निःसृत एक
    आवाज है,
    एक स्पंदन है;
    अभिव्यक्ति है.
    बिलकुल सही कहा आपने। कई बार लिखने बैठो तो कविता लिखी नही जाती मगर कई बार बिना सोचे3 ही मन से शब्दों का प्रवाह बह उठता है। अच्छी लगी आपकी कचिता। शुभकामनायें

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  2. वह दिल से
    निःसृत एक
    आवाज है,
    एक स्पंदन है;
    अभिव्यक्ति है.....bahut sahi kathan...kavita shabdon ka zaal nahin, yah to man ki swaprerit abhivyakti hai....

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  3. प्रणाम स्वीकार करें !!
    सच में कविता को आपने कितना सुन्दर परिभाषित किया है.....
    इस सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए सादर बधाई |

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  4. आपकी बात से,वह प्रसिद्ध जर्मन उक्ति याद आई कि चार सौ पृष्ठों के उपन्यास में भी कथ्य का संभवतः उतना ही अंश निहित होता है,जितना कि चार छंदों वाली किसी कविता में।

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  5. परन्तु कविता तो
    संकेतो- प्रतीकों से
    भी पहुचती है -
    गंतव्य तक.

    kabhi kabhi yahi kavi ki duvidha ban jaati hai...sanketon tatha prateekon ko sahi se samajhne wale kam hi hote hai..bahut sundar Tiwari Ji..aap ka comment aaj hi padha..bahut achcha laga ki aap ne kavita ko is layak samjha ki Yug Garima mein chapwayen..bahut dhanyavaad ..main online padh loongi, aapko bhejne mein takleef hogi..

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  6. नमस्कार!!
    सभी सम्मानित सहयोगियों का हार्दिक आभार जिन्होंने न केवल ब्लॉग को पढ़ा बल्कि important सुझाव भी दिए. सभी का एकबार पुनः आभार. ऐसे ही समालोचना और समीक्षा लिखने को प्रेरित करता है.

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  7. संध्या जी
    आपका कहना सही है, संवेदना की बात है केवल, जो संवेदी होता है वह संकेत और प्रतीक नहीं' मौन के संदेश को भी समझ लेता परन्तु जो संवेदन शून्य होते हैं या अल्प संवेदी होते हैं सारी समस्या उन्ही को लेकर है. आपको आश्चर्य होगा लोग पूरा-पूरा जीवन एक छत के नीचे गुजार देते हैं परन्तु एक दूसरे को जान ही नहीं पाते केवल सामजिक परम्परा का निर्वहन करते हैं. और ऐसे ही लोग अधिक हैं. वे बहुत भाग्यशाली होते है जिनको समझने वाला कोई मिल जाता है, ख़ास रूप से जीवन साथी के रूप में. यह नई बात नहीं है, धैर्य की आवास्यहता है. यह यह पंक्ति तो पढ़ी ही होंगी - "रसरी आवत जात ते शील पर पडत निशान'. आशावादी रहिये.....शुभकामनाये साथहैं.

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