जिसे सम्मान के साथ
कहा जाता है - " पंचम वेद " .
इस पंचम वेद में ज्ञान है,
विज्ञानं है, प्रज्ञान है, मनोविज्ञान है,
और कुछ लक्ष्य है, कुछ नीति है.
विज्ञानं है, प्रज्ञान है, मनोविज्ञान है,
और कुछ लक्ष्य है, कुछ नीति है.
कुछ संधान है, कुछ स्याह है, कुछ रहस्य है,
कुछ रोमांच है, छल है, बल है तो 'गीता' रूपी
दिव्य प्रकाश भी है; जिसके दिव्य आलोक मेंशेष सब पड़ जाते हैं, धूमिल और प्रभाहीन.
अनुसंधानों की कमी नहीं वहाँ,
सभी जुटे हैं किसी न किसी संधान में,
अपने निजी अनुसन्धान में.......,
इस बात से बेखबर, बेपरवाह कि
इसका अंतिम भविष्य क्या है?
क्या है इसकी उपयोगिता - उपादेयता?
समाज, संस्कृति और प्रकृति के लिए?
सोचिये! महाभारत का रूप क्या होता?
शांतनु का मन यदि विचलित न होता?
भीष्म ने पित्री भक्ति में प्रतिज्ञा की तो की,
परन्तु समय पर यदि समीक्षा किया होता?
कुंती ने ऋषि मन्त्र पर यदि विश्वास किया होता?
शंकालु हो, परीक्षण का दुस्साहस न किया होता,
कर्ण जैसी प्रतिभा को विवादास्पद बनाया न होता.
यदि गांधारी ने आँखों पर पट्टी बाँधी न होती?
राज्य प्रबंधन में ध्रितराष्ट्र का हाथ बंटाया होता?
पति के भटकाव पर यदि सन्मार्ग दिखाया होता?
इन सबके बावजूद यह इतना विभत्स न होता,
आखिर शकुनी जैसों का बहन के घर क्या काम?
विदेशी कोई भी हो अंततः विदेशी ही होता है,
चाहे वह शकुनी हो, एंडरसन हो या कोई अन्य पर्सन.
ध्यान रहे जब भी बाहरी व्यक्ति अत्यधिक सम्मान पायेगा,
एक दिन घर पर / समाज पर धुँध बनकर छा जायेगा.
सच मानिये, महाभारत का है जो भी स्याह पक्ष ,
कुटिल, धूमिल विभत्स और विकृत चित्र...........,
वह आया ही न होता, बद्नुमदाग बन छाया ही न होता,
यदि शकुनी जैसों का मान -सम्मान बढाया न गया होता.
लेकिन सोचिये ऐसा क्यों हुआ?
इसलिए की यह मानव स्वभाव है,
वह स्वयं को तुष्ट -संतुष्ट करना चाहता है,
उसकी अपनी व्यक्तिगत सोच और अरमान है.
उसका अपना निजी दर्शन और विज्ञानं है.
वह इतिहास से सीखता है और भूगोल बदलता है.
विज्ञानं में संशोधन परिवर्धन करता है.
लेकिन हमने इतिहास से नहीं सीखा,
फलतः भरत का भूगोल बदल गया है आज.
इतने सदियों बाद भी क्या हम उठ पायें है,
महाभारत कालीन कमजोरियों से?
यदि नहीं तो कब चेतेंगे?
यदि उसी परंपरा के संवाहक हैं अब भी,
तो क्या नए महाभारत का सृजन करेंगे?
अथवा अपना सुधार और परिष्कार करेंगे?
यदि अब भी न चेते तो इतिहास अपने को
दुहरा जाएगा और भारत का भूगोल
एक बार फिर बदल जायेगा.
सोचिये....सोचिये और हमें भी बताइये,
कुछ मार्ग तो दिखाइए, ध्यान रहे -
हमें समृद्ध भारत चाहिए महाभारत नहीं.
हमें समृद्ध भारत चाहिए महाभारत नहीं.
ReplyDeleteबात तो आपने सही कही मगर ऐसा आज के नेता कब चाहते हैं फिर उनकी जरूरत कहाँ रह जायेगी अगर भारत समृद्ध बन गया तो।
वंदना जी नमस्कार!
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ परन्तु हम जनता हैं, बहुमत हमारा है , हमारी कमियों को जानकर, हमें बाँट कर अलग - अलग कर देना चाहते हैं. हममे जो इस बात को जनता है उसकी जिम्मेदारी बढ़ जाति है कि वह सही बात सभी के समक्ष प्रस्तुत करे. आज हम, आप तथा अन्य ब्लोग्गर यही तो कर रहें हैं.
यदि उसी परंपरा के संवाहक हैं अब भी,
ReplyDeleteतो क्या नए महाभारत का सृजन करेंगे?
अथवा अपना सुधार और परिष्कार करेंगे?
यदि अब भी न चेते तो इतिहास अपने को
दुहरा जाएगा और भारत का भूगोल
एक बार फिर बदल जायेगा.
सशक्त सवालों से भरी उम्दा रचना .....!!
हरि कीरति जी
ReplyDeleteनमस्कार
शायद पहलीबार आप मेरे ब्लॉग पर आयीं है. स्वागत है आपका और आपकी टिप्पड़ियों का. आखिर कौन उठाएगा उन प्रश्नों को जो वह देख रहा है , महसूस कर रहा है. आखिर प्रश्न उठाने और जागृत करने के अलावा मार्ग भी क्या है हमारे पास ? हम केवल जन जाग्रति ही कर सकते हैं और वही कोशिश कर रहें हैं