जिसे दी गयी है 'आज' की संज्ञा,
वह क्या है, समय का प्रवाह खण्ड?
भूतकाल की पश्चाताप ?
या वर्तमान की निराशा?
यह भविष्य की कल्पना है
या निरा स्वप्न?
भूत जो हमारे बश में नहीं,
जहाँ लौटना और लौटाना,
दोनों ही है अब तक असंभव.
परन्तु कल क्या हो पायेगा संभव?
और भविष्यत् क्या है?
एक स्वप्म, एक आशा;
या भूत का प्रायश्चित,
सुधार का एक अवसर?
प्रकृति का दिव्य उपहार?
या कृपा निधन की कृपा?
क्या यह आज असंतुष्टि और,
स्वप्न के बीच एक प्रत्याशा है?
या परीक्षा की एक घडी ?
जिसमे है मन और बुद्धि,
यथार्थ और आदर्श का द्वंद्व.
आज का अर्जुन तो व्यामोह में खड़ा है.
अभिमन्यु को रणक्षेत्र में क्या तब भी
जाने देता यदि स्वयं उपस्थित होता?
लेकिन इसकी आवश्यकता ही कब पड़ती?
तब क्या चक्रव्यूह भी रचा जाता? सभी ने
कल की प्रत्याशा में अपने आज को जिया था.
जो मन में आया विजय के लिए किया था.
तो क्या विजय ही है सर्वोच्च मूल्य?
क्या भरत का राज्य त्याग, उनकी हार है?
क्या भीष्म का प्राणोत्सर्ग उनका प्रायश्चित है?
क्या दधीचि का अस्थि दान उनका भय है?
क्या अनुसुइया का दुग्ध पान करना, पराजय है?
इनमे किसी को भी सत्ता तो महीन मिली,
गद्दी और राज्य तो नहीं मिला ?
तो क्या इनके कृत्य का कोई मूल्य नहीं?
आखिर निर्याय कौन करेगा?
कौन करेगा मूल्यों को परिभाषित?
हम, आप या आगामी पीढ़ी?
कौन ढोयेगा भूतकाल की सीढ़ी?
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