वे ऐतिहासिक पुरुष नहीं,
एक "प्राज्ञं पुरुष" हैं,
स्वयं एक इतिहास हैं,
सृष्टि उनकी करुणा
का .......विलास है...
नहीं हूँ विरोधी बुद्ध का,
उनका 'शील' उनकी 'संयम',
उनकी 'वेदना' उनकी ' प्रज्ञा',
उनका 'बोध' उनकी 'समाधि',
बहुत - बहुत प्रिय है मुझे.
उनके 'चार आर्य सत्य''
उनका 'अष्टांग योग',
उपयोगी ही नहीं....
अनिवार्य तत्व हैं मानवता के.
अध्ययन किया है
उनके 'जीवन यान' का,
'हीनयान' और 'महायान' का भी.
खूब पढ़ा है - 'बोधि सत्व' को,
और नागार्जुन के 'शून्यवाद' को भी.
फिर भी क्यों...? आखिर क्यों..?
सहमत नहीं हूँ मैं, उनके प्रयाण से ...
उनकी परिकल्पना के 'निर्वाण' से.
जीवन तो एक उल्लास है,
इसमें शांति की सहज प्यास है.
.'निर्वाण' तो एक आभास है,
और 'लौ' तो स्वयं प्रकाश है.
कितने वे लगते हैं अच्छे,
जब कहते - "आपो दीपो भव".
चर्चा करते "बुझ जाने की"
तब विल्कुल बच्चे लगते हैं.
पूछता हूँ स्वयं से एक प्रश्न,
बार - बार फिर बारम्बार,
प्रत्युत्तर में कहीं दूर अन्तः से,
आती है एक स्पष्ट आवाज:
नहीं चाहिए मुझे 'प्रयाण',
यदि अर्थ है इसका बुझ जाना.
मैंने केवल 'लौ' को जाना.
आंधी और तूफ़ान में देखो,
"'लौ' को महूब लहराए दीपक,
बुझने से पहले भी देखो;
सौ - सौ दीप जलाये दीपक.
मुझको यह दीपक है प्यारा,
प्यारा इसका जलते रहना.
इस जलते दीपक की खातिर,
जन्म - मृत्यु सब कुछ है सहना.
वन्दे मातरम !!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को पढने का आपने सौभाग्य दिया सादर आभार. न जाने क्यों पर मै आपसे अधिकारपूर्ण निवेदन करना चाहता हूँ की मुझे और मेरे ब्लॉग को समय समय पर आप मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद देते रहें...!!
आपके ब्लॉग को पढ़कर आपसे जबरदस्त जुडाव का अनुभव मै कर रहा हूँ, आपको शुभकामनायें प्रेषित करना चाहता हूँ स्वीकार करें ......!!
आदरणीय भारतीय जी
ReplyDeleteसस्नेह नमस्कार!
आपकी भावनाओ का सहृदयता से स्वागत, आपने जो साधिकार पूर्वक बात कही है वह आपके स्नेह, गाम्भीर्य और लगाव का द्योतक है. सुझाओं और निर्देशों का सतत स्वागत