शिक्षा का उद्देश्य है - प्रस्फुटन, अंकुरण,
आतंरिक सृजनात्मक शक्तियों का.
शिक्षा का उद्देश्य है - प्रकटन,
मानव की सम्पूर्ण संभावनाओं का.
शिक्षा है - एक पुनीत अवसर,
सन्मार्गी के स्वरुप में रूपांतरण का.
शिक्षा है - संस्कार के माध्यम से,
संस्कृति की पहचान / अभिवृद्धि का.
शिक्षा है - व्यवहार के माध्यम से,
सभ्यता, संस्कृति के प्रदर्शन का.
शिक्षा है - आचरण के माध्यम से,
मानवीय मूल्यों में अभिवर्द्धन का.
शिक्षा है -
सर्वोच्च सामाजिक गठन हेतु,
उपयुक्त मनोभूमि की ......
आंतरिक संरचना का.
अनुकूलता, वैयक्तिकता
और ....सार्थकता का.
शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य है -
मानव का देवत्व रूप में उन्नयन.
मानव का दानव के रूप में पतन,
शिक्षा की असफलता मात्र नहीं,
उसपर न मिटने वाला धब्बा,
और घोर - घनघोर ..कलंक है.
शिक्षा की सफलता में ही,
अंतर्भूत है - व्यक्ति निर्माण,
चरित्र निर्माण, समाज निर्माण
और श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण.
शिक्षा की उपयोगिता में ही
सन्निहित है - वैश्विक शांति,
वैश्विक समृद्धि, वैश्विक सौहार्द्र.
आज शिक्षा के नाम पर,
दृष्टिगत हैं अनेकश: प्रमाण पत्र,
और बड़ी उपाधियाँ, कुछ महँगी,
और कुछ अति महँगी उपाधियाँ.
फिर भी क्यों लगते हैं
ये उपाधि धारक, चंचल मानव,
एक प्रशिक्षित बन्दर ?
क्यों है उनमे गांभीर्य का अभाव?
और क्यों है, सहनशीलता, साहस,
धैर्य, और समुचित आदर का अभाव?
उनकी दृष्टि सतत कार्य और
दायित्व के बजाय, फल और
अर्थ पर ही केन्द्रित क्यों है?
और आज का शिक्षक समाज
मौन और मूक दर्शक क्यों है?
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