हो न निराश तुम्हे मिला नहीं,
यदि बेला, चंपा और गुलाब.
नैराश्यभाव से तार न जोड़ो,
आशा की कोई राग तो छेड़ो.
देखते हो केवल रंग-रूप तुम,
उससे रिसता लहू भी देखो...
भ्रमित हुए हैं जीवन में कितने.
कुछ अंतस में भी घुस कर देखो.
पुष्प केवल बेला और गुलाब नहीं,
....अब गेंदा कनेर से नाता जोड़ो.
इस गुलाब ने, बेला ने लुटे हैं,
घरौदें, एक नहीं....बहुतेरे....
बहुतों के गम दूर किये हैं -
गेंदा ....और ....कनेरे.........
अधिकारों की माँग बहुत है,
गुलदस्तों में ये गरजते हैं.
कर्त्तव्यों का है बोध उसे,
अंगारे पर जो चलते हैं.
यह बेला- गुलाब बिछ पथ में
उनके पैरों में फिर चुभता है.
यह तो है गेंदा कनेर जो
पग के घाव को भरता है.
राग जुड़ेगा सत्व से जब,
सब रंग - रूप भूल जाएगा.
मोहकता ही नहीं है सबकुछ,
परख कभी जब हो जाएगा.
prerna dayak kavita...bahut kuch seekhne ko mila
ReplyDeleteबढ़िया रचना.
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