Sunday, May 2, 2010

आखिर हिंदी अपनी हार गयी,

आखिर हिंदी अपनी हार गयी,
हिंद के गले की 'हार' गयी.
होता है कष्ट कहें कैसे ?
यह हिंदी हिंद में हार गयी.

यह 'आह' - 'वाह' की बात नहीं,
दिल पर भी नया आघात नहीं.
दिल भरा - भरा है घावों से,
है कष्ट दिलों से भाषा की प्यार गयी.

हर देश की अपनी भाषा है,
क्यों भारत में ही निराशा है?
एक जुबाँ के लिए तरसते हैं,
बाहर तो खूब गरजते हैं.

जब सदन में चर्चा उठती है,
हिंदी की लुटिया डूबती है.
हाउस में वो शर्माते हैं,
जो हिंदी की ही खाते हैं.

चुप बैठे वे क्यों रहते हैं?
जो बाहर खूब गरजते हैं.
क्या भय है अन्दर उनके,
जो घुट-घुट कर वे सहते हैं?

अब आंग्ल भाषा आयी है,
दिलों पर सबके छाई है.
यह नटखट छैल-छबीली है,
यह कटी पूँछ की बिल्ली है.

हिंदी के घर की खाती है,
पर 'हाई', 'हेल्लो" करती है.
हिंदी को समझती चुहिया सा,
पंजों से वार ये करती है.....

जब से संगति हुयी इससे,
वे बन गए तब से 'रंगे सियार',
पहले बदले वस्त्र - विचार,
फिर बदल गए सारे व्यवहार.

जाब सूट - बूट में आते हैं,
अंग्रेजी में गुर्राते हैं.....
जब बाँध के पगड़ी आते हैं,
बैठे - बैठे शर्माते हैं......

अब आचरण एक पहेली है,
रहस्यमयी एक हवेली है.
है बुढ़िया यह जादूगरनी सी,
वे समझे यह नई - नवेली है.

यह पर्दा कौन हटाएगा ?
वह वीर कहाँ से आयेगा ?
अब भी तुम जगे नहीं भाई!,
निश्चय ही 'क्लीव' कहलायेगा.

2 comments:

  1. इस देश में हिंदी जैसे इमानदार भाषा का कद्र ना होना वैसे ही है ,जैसे इस देश में सत्यमेव जयते और इमानदार व्यक्ति का कद्र ना होना / दोनों ही स्थिति इस लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है /आज की पूरी तरह सड़ चुकी व्यवस्था का सजीव चित्रण करती इस प्रेरक कविता के लिए आपका बहुत-बहुत दन्यवाद /

    आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /

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  2. वास्तव में हिंदी की अपने देश में ये हालत देख कर मन दुखी हो जाता है | और देश के लोग हिंदी बोलने में शर्माने लगे हैं ! यह तो ब्लॉग जगत के आप जैसे लोग हैं जो अब तक हिंदी के विकास ने सहायक हैं अन्यथा तो ना जाने क्या होता .....लिखते रहें यूँ ही !

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