देखो ! ईश्वर ने हम सबको,
आत्मोन्नति का एक मार्ग दिखाया.
"अणुरोअणीयम महतो महीयान"
सूत्र को सरल-सुगम करके बतलाया.
कैसे बने विराट क्षुद्र से ? ,
अनुप्रयोग भी कर दिखलाया.
अणु से अमीबा- मत्स्य-कच्छ-वाराह,
और अर्द्ध-मानव से वामन तक.फिर
वामन से मानव; महामानव ....
महामानव से, पुरुषोत्तम-बुद्ध-योगेश्वर तक का.
अणु से विभु तक बन जाने का,
बन 'प्रकाश' छा जाने का - राह दिखाया.
कभी 'हँसकर - कभी रोकर', कभी 'निष्प्रिः,
कभी मौन' हो, उत्कर्ष की सरी कला सिखाया.
जड़ता से, निष्क्रियता से, कीट-पतंग से, पशुता से,
....इन सबसे...., मानवता को सर्वोच्च बताया.
नहीं है केवल यह मेरे भाई ! यह;
जैविक-भौतिक विकास की कोई कहानी.
छिपी हुई है इसके अन्दर, सुगठित-सुष्मित;
स्व-परिष्कार; आत्मोत्थान की गूढ़ कहानी.
करो दूर जड़ता-मूढ़ता, निष्क्रियता को,
अब छोडो पशुता-हिंसा, बर्बरता को,
अब ज्ञान-दृष्टि, प्रज्ञा-विवेक अपनाओ,
अपनी संस्कृति- प्रकृति का मान बढाओ,
छू लो शिखर तुम नैतिकता की;
मानवता की - ऐसी अलख जगाओ.
बहुत उम्दा रचना!!
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक संदेश..
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने , बधाई स्वीकार्य करें ।
ReplyDelete"अणुरोअणीयम महतो महीयान" के बारे में विस्तार से गद्य में बताइये न?
ReplyDeleteभाई अनुनाद सिंह! यह उपनिषद् कि शब्दावली है, इसके लिए थोड़ी - बहुत दार्शनिक ज्ञान कि आवश्यकता है. इस शब्दावली के दो पक्ष है - (i) लघुतम से भी लघु, अणु से भी छोटा. smaller than smallest. (ii) महानतम से भी महान, सर्वोच्च से भी ऊँचा, gretter than greatest.
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