क्या है काव्य ?
काव्य आत्मोदगार है; ह्रदय की रसधार है,
आवेग के संवेग में भी; बहते यहाँ विचार हैं.
ह्रदय तो परमात्मा का अगार है; शब्द ब्रह्म है- यह !
कविता जनार्दन का सन्देश;
जनता जनार्दन तक पहुचती है,
कविता विधि सापेक्ष; विधि निरपेक्ष होती है,
कुछ उसी तरह, जैसे विधि ही है - सापेक्ष,
निरपेक्ष, और सापेक्ष - निरपेक्ष.
काव्य कभी विधि सम्मत होता है,
कभी विरोधक होता है, यह निरपेक्ष
- शाश्वत - शांत - प्रशांत होता है,
रागी-विरागी, दैहिक-दैविक-भौतिक होता है.
काव्य, साहित्य प्रायः आन्दोलन करते नहीं,
कराते है. ये कभी जनता को जनार्दन के लिए,
और कभी विधि के लिए, तो कभी
जनार्दन को जगत के लिए प्रेरित करते है.
बात जहाँ तक नीति और राजनीति की है -
काव्य कभी राजनीति करती नहीं,
राजनीतिज्ञों की कसती नकेल है,
काव्य के उदगार को नकारने वाला,
यहाँ पास नहीं फेल है.
जो कविता अल्पायु होती,
वह निःसृत नहीं; सृजित है,
वह मन का उदगार नहीं;
मष्तिष्क की उपज है,
सामयिक बौद्धिकता उसमे
गुम्फित- संचित और संरक्षित है.
मरता है कवि, मगर काव्य अमर है,
यह आत्म कलश से
नि:सृत कल्याणमयी एक रस है.
ह्रदय की कविता सृजन है;
मष्तिष्क की कविता - ध्वंस.
ह्रदय की कविता भजन है;
मष्तिष्क की कविता - व्यसन
ह्रदय की कविता योग है;
मष्तिष्क की कविता - भोग.
ह्रदय की कविता विद्या है;
मष्तिष्क की कविता - शिक्षा.
ह्रदय की कविता व्यापक है;
मष्तिष्क की कविता - सीमित.
ह्रदय की कविता भावप्रवाह है;
मष्तिष्क की - शब्द संयोजन
ह्रदय की कविता सौन्दर्य है;
मष्तिष्क की कविता - सतर्कता.
ह्रदय की कविता झरना है;
मष्तिष्क की कविता - नहर.
ह्रदय की कविता कालातीत है;
मष्तिष्क की कविता - कालबद्ध.
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