एक पतंग और पतंगे मे
बस अंतरप केवल इतना है
एक नियम बद्ध उड़ती है
दूजा हो स्वछंद उड़ता है
स्व को स्वतंत्र समझता है
जा कर लौ मे झुलसता है,
इस बात का कोई अर्थ नहीं
यह त्याग, समर्पण है उसका
या कोई आक्रोश- प्रतिशोध
लम्बे समय से चल रहा है
इन बातों पर अनवरत शोध
इसीलिए मैं फिर कहता हूँ
सुन री ओ मेरी कविता !
मार्ग कभी तू भटक न जाना
दायित्व कभी तू भूल न जाना
अपना कर्तव्य निभाना तू,
पथ दिखलाना तेरा काम
दायित्व सदा निभाना तू
सुन री मेरी कविता !
सुन री ओ मेरी कविता !!
जयप्रकाश तिवारी
बख़ूबी अंतर को रखा है आपने पर क्या कविता की स्वच्छंद उड़ान महि होनी चाहिए ... बंधन में सृजन क्यों ...
ReplyDeleteअच्छे रचना प्रभावी रचना ...
बहुत सुंदर
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