'माँ' जीवन की मेरे
संबल थी, आशा थी
मेरे व्यक्तित्व की
संबल थी, आशा थी
मेरे व्यक्तित्व की
सम्पूर्ण परिभाषा थी,
उसकी इच्छा ही थी,
उसकी इच्छा ही थी,
मेरे लिए संविधान
मैं सुनता रहा,
मैं सुनता रहा,
जग कहता रहा,
पागल एक इंसान
डॉ जयप्रकाश तिवारी
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