निहारा था उसे इस विचार से कि
बेवफाई तो एक अदा है सौंदर्य की
लेकिन वह तो ऐसी बावफा निकली
समा गयी मेरे पूरे तन - बदन मे
हो गए द्वारपाल सब नतमस्तक
एक सम्मोहन, ऐसी वह दिखा गयी
अब तो दिल ही नहीं दिमाग पर भी
उसी का एक मात्र साम्राज्य है
अब तो बन गया हूँ मैं उपासक
अब वही मेरी एक मात्र आराध्य है
जब भी मैं कलम उठाता हूँ
मन मस्तिष्क मे वो छ जाती है
लिखना चाहता हूँ और कुछ
अपने मन की वह लिखवाती है
मैं तो हूँ एक निमित्त मात्र अब
जो कुछ भी अब, उसी का सब ॥
यूं कहने को तो साथ हैं दशकों से
सौंदर्य की प्रतिमा है, अब जाना ॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी
Good blog. Padhkar khushi hoti hai.
ReplyDeleteधन्यवाद
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