Thursday, January 8, 2015

तू नटराज सा लगता है

 'मेरा' बदला अब 'तेरा' में
तू ह्रदय बसा सम्राट बना
मैं तुझे अकेला समझा था ...
तू तो यह सृष्टि विराट बना,
हर जीव में 'तू ही' बसता है
कण-कण में तू ही दिखता है
लगती यह सृष्टि संगीतमयी
और तू नटराज सा लगता है।
अब प्रेम भक्ति का रोना गाना
यह बचपन का खेल खिलौना
सब छूट गया, अब मौन हुआ
मैं वही क्या था,अब कौन हुआ?
तुम विंदु-सिंधु का खेल खेलते
हम विंदु-सिन्धु के बीच डोलते
कभी बून्द ही सिंधु बन जाता
कभी सिन्धु बूँद में डूब जाता। .


डॉ जयप्रकाश तिवारी

1 comment:

  1. अति सुंदर...मौन में ही वह मिलता है

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