मांगू तुझसे, तो क्या मांगू
सब कुछ तो तूने दे डाला
तन-मन अपना मथकर के
पीयूष स्रोत सब दे डाला.
खाने को रचा कानन-उपवन
पीने को दूध, दधि औ छाछ,
यह प्राणवायु जिनसे मिलती
है
मानो तुम, कुछ उनका
उपकार.
दे चुकी सब माँ, जो देना
था
अब तुझको देना है
प्रतिकार,
ऋण चुकता क्या कर पायेगा
पर, कुछ तो अपना भार
उतार.
अब भी तू चाहता है अवदान
अरे! सीख तुझे कब आएगी?
कब छूटेगा लघुता-अभिमान?
तू कितना बन गया कृतघ्न?
सब भूल गया उसका उपकार
क्यों मूर्ख बना, सुन ओ
नादान
अब कुछ तो अपना भार
उतार!
कुछ तो बनो ! उसका
कृतज्ञ,
क्यों फूला-फूला फिरता
है तू
यह प्राण उसी के दम पर
है,
तू कुछ तो अपना भार उतार
!!
डॉ. जयप्रकाश
तिवारी
तिवारी सदन
ग्राम / पोस्ट – भरसर
जिला – बलिया (उत्तर प्रदेश)
बहुत सुंदर ॥नव रात्रि पर्व की शुभकामनायें
ReplyDeleteआभार पधारने और टिपण्णी के लिए. नारात्रि पर्व की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रार्थना .. माँ के चरणों में ...
ReplyDeleteनव रात्री की शुभकामनायें ..
बहुत प्रभावशाली सुंदर प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteनवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें,,,,,
recent post : भूल जाते है लोग,
माँ की कृपा अपार है..आभार!
ReplyDeleteआप सभी साहित्य प्रेमियों का आभार aur naratri parw ku mangal kamnayen.
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