माँ ने हमको
बुद्धि दी
हम बुद्धि-माँ
कहलाते हैं
हो गए अब इतने
बुद्धिमान
गिरगिट सा रंग
जमाते हैं.
काली-माँ के
पुत्र होकर
उसी से कालिमा
छिपाते हैं,
ओढ़के लक-लक चादर
श्वेत
हम महान कहलाते
हैं.
किया खून
इंसानियत का
फिर भी इंसान
कहलाते हैं,
मानवता रख दी ताक
पर
फिर भी मानव
कहलाते हैं
देखो कितना हुनर
दिखाया
काले को भी श्वेत
बनाया
किया कैद भगवान को
हमने
धरती के भगवान
कहलाते हैं.
- डॉ. जयप्रकाश तिवारी
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (27 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
आभार इस सम्मान हेतु
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,उम्दा सार्थक प्रस्तुति !!!
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
BEHTAREEN
ReplyDeleteसच्ची...........
ReplyDeleteकलाकार है मानव...
:-(
सादर
अनु
सभी सुधि समीक्षकों का स्वागत एवम हार्दिक आभार
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