Friday, August 24, 2012

ब्लोगर: दिशा, दायित्व और दृष्टि

   जो गुण विशेष मानव जाति को शेष दुनिया से पृथक करती है, वह है उसका चिंतनशील होना. यह चिंतन प्रायः दो प्रकार का होता है – 'मौन' और 'मुखर'. चिंतन का मुखर होना ही अभिव्यक्ति है. यह अभिव्यक्ति भी दो प्रकार की हो सकती है- ‘स्वान्तः-सुखाय’ या ‘सर्व-सुखाय’. सर्व-सुखाय की बात करनेवाला चिन्तक व्यक्ति, समाज, प्रकृति, सभ्यता, संस्कृति और विभिन्न शोध कार्यों पर पैनी दृष्टि रखता है और अपनी दृष्टि-बोध को समाज के समक्ष रखता है अपने तर्कों और आंकड़ों के साथ. लेकिन उसका उद्देश्य व्यक्तिगत आरोप-लांछन नहीं होना चाहिए, सर्वगत कामना ही उसका उद्देश्य अनिवार्य रूप से होना चाहिये. एक सृजनात्मक – रचनात्मक – परिणामी उद्देश्य के लिए चिन्तक की अभिव्यक्ति का अनुप्रयोग ही, आज ‘मीडिया’ के नाम से जाना-पहचाना जाता है. इस मेदा के कई स्वरुप हैं- प्रिंट मीडिया, दृश्य मीडिया और अंतरजाल (इन्टरनेट). इस इन्टरनेट मीडिया का ही दूसरा नाम ब्लोगिंग है और ब्लॉग लिखनेवाला कहलाता है– ब्लोगर. आज इन्टरनेट के विभिन्न सोशल साइट्स हैं जिनपर विचारों और  संवेदनाओं का आदान-प्रदान होता है. मीडिया भी यही कार्य करती है.

      अब प्रश्न यह है कि इन्टरनेट के विभिन्न ब्लॉग / साइट्स क्या मीडिया  की भूमिका निभा सकते हैं? अथवा क्या मीडिया का विकल्प बन सकते हैं. यहाँ ध्यान देने की बात है कि जब हम विकल्प की बात करते हैं तो उसके साथ दो चीजें स्वतः जुड जाती हैं– (१) व्यापकत और (२) सस्ता तथा सरल होना. इस दृष्टि से इन्टरनेट जगत कमजोर पड जाता है. कारण, व्यापकता का अभाव और महंगा संसाधन के साथ-साथ, उपयोग और अनुप्रयोग की जटिलता. व्यापकत की दृष्टि से यह शिक्षित तकनिकी परिवार और माध्यम वर्ग के शिक्षित विद्यार्थियों तक ही व्याप्त है, जो आबादी प्रतिशत की दृष्टि से अत्यंत कम है. लेकिन इसका एक दूसरा सार्थक और उत्साहवर्द्धक पक्ष भी है, यह पक्ष है इसका शिक्षित लोगों के पास होना. किसी भी समाज को सही दिशा देने का कार्य यही शिक्षित-चिन्तक वर्ग करता है. शेष सामान्य जनता तो उनका अनुशरण करती है.

      दूसरे रूप में यदि कहा जाय तो इन्टरनेट मीडिया के रूप में एक ऐसा अस्त्र-शस्त्र है जो समाज के कमांडरों के पास है, सैनिकों के पास नहीं. मोबाईल के साथ इसके गंठजोड से यह अस्त्र जागरूक सैनिकों के पास भी आ गया है. यदि कमांडर उचित दिशा-निर्देश सकारात्मक दृष्टि से अपने सैनिकों को दे पाए तो कोई कारण नहीं कि हम सामाजिक – राष्ट्रीय, सांस्कृतिक जंग नहीं जीत सकते. अनिवार्यता है संविधान की मर्यादा का पालन करते हुये सन्देश और विचारों में सृजनात्मकता की, लोकमंगल की, राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रशक्ति की. एक छोटी सी फ़ौज जीत सकती है यदि कमांडर दृढनिश्चयी, दूरदर्शी और पराक्रमी हो. आइये इस दृष्टि से विचार करें की एक ब्लोगर क्या है

आखिर एक ब्लोगर है क्या?
प्रश्न है कि आखिर एक ब्लोगर है क्या? एक चिन्तक,? एक रचनाकार? एक रिपोर्टर या एक लेखक? एक कवि, अथवा समालोचक? अथवा सब कुछ एक ही साथ? खींचता है जो अपनी रचनाओं में दृश्य - परिदृश्य, अपनी अनुभूति. उन संवेदनाओं, प्रतिक्रियाओं की, जो एकल हो या सर्वसमाज की और देता है उसे एक सार्थक स्वर. एक आकार, प्रकार और  प्रतिकार राष्ट्रहित में?

वह जन चेतना की आवाज है या नितांत अपने ही मन के पञ्चकोशों तक सीमित रहनेवाला एक 'कन्दरानुरागी'.एकांतवासी और अरण्य निवासी? अथवा जो बांटता है सर्व समाज से,जनता-जनार्दन से, तत्कालीन ही नहीं, समकालीन, पुरातन, और नवीनतम हलचलों की वर्तुलों के सार्थक स्वर को? वह सहमति है, आलोचना है या विरोध? अथवा है वह, कुछ सक्षम – समर्थ लोगों का एक चारण? एक दूत? और सुविधा भोगीसत्यता को छिपा, छद्मवेशी एक अग्रदूत?

आखिर ऐसा कौन सा क्षेत्र है, या विधा है, कौन सी सत्ता है, लौकिक या पारलौकिकजहाँ किसी ब्लोगर का हस्तक्षेप नहीं..? मूल्यों की दृष्टि से, विविधता की दृष्टि से, इतना तो स्वीकार करना ही पडेगा कि क्या काबुल में गधे नही होते? लेकिन, इससे घोड़े का मूल्य, कम तो नहीं हो जाता. ऐसा नहीं कि पुरातन में उर्वरता-उपयोगिता नहीं. वैसे ही सभी आधुनिक भी सदुपयोगी नहीं... ब्लोगर निकालता है उससे- 'पराग' और नवनीत'. रचता है वह- गद्य, पद्य, नाटक .और ..नवगीत.

अंततः फिर वही प्रश्न, एक ब्लोगर है क्या.? उत्तर में छोटा सा प्रतिप्रश्न पूछना चाहता हूँ - जब समाज का सभी वर्ग जुटा होता है,रोजी-रोटी कमाने में, निन्यानबे के फेर में, ब्लोगर नेट पर आँखे क्यों गडाए रहता है? ढूंढ - ढूंढ कर नई पोस्ट क्यों पढता है? अपनी टिप्पणी उस पर क्यों छोड़ताहै?

और अंत में दो टूक प्रश्न; आखिर ब्लोगर यह सब क्यों करता है? किसके लिए करता है, बिल्कुल मुफ्त में? समाज से प्रतिदान में उसे मिलता है क्या? और वह समाज को अंततः देता है क्या..?

कितने अल्पज्ञं हैं वे जो यह कहते है, ब्लोगर लड़ता है – एक 'नूर कुश्ती', सरकार के संग, सत्ता के संग. करता है दोहन संवेदनाओं का. समझ में नहीं आता,.क्या उन्हें पता भी है कि संवेदना होती है क्या? यह आती कहाँ सेऔर जाती कहाँ को हैवह करती क्या है?

हाँ, ब्लोगर एक रचनाकार है, सर्जक है, संवेदनशील विचारक है - वह करता है विचार, राष्ट्र की समस्याओं पर, समाज की विकृतियों, उसकी समस्याओं पर, शासन-प्रशासन की सुव्यवस्था-कुव्यवस्था पर, प्राकृतिक आपदा, असके कारण - निवारण पर. वह निःशुल्क है, बाजारू या व्यापारी नहीं. कनक और कामिनी उसकी कमजोरी नहींइसलिए उसके पास अपनी कोई तिजोरी नहीं..

वह कबीर क़ी प्रज्ज्वलित मशाल का संवाहक, और समाज पथ एक कुशल धावक है, वह समाज को बनाने, पुनः-पुनः सवारने और उसे मिटाने देने क़ी दवा है. वह जहां विज्ञान रूप में 'सिद्धांत है', वहीँ प्रज्ञान रूप में- 'समाधान है', और संत रूप में 'अचूक दुआ है.

हाँ, ब्लोगर एक सुकरात है जो गली - चौराहे पर खडा मिलता है, वह हर आने - जाने वाले के तन और सुप्त मन को झकझोरता है. ब्लोगर एक ब्रूनो है जो सत्य बोलता है, जलाये जाने, जहर पीने से कब डरता है?

ब्लोगर एक न्यूटन है, वह आइन्स्टीन और हाकिंग है. यदि वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्य को परत दर परत खोलता है, यदि अणुओं और परमाणुओं में स्पंदन ढूंढता है, जमीं और आसमा का गति मापता है. तो एक ब्लोगर सामजिक वैज्ञानिक है जो समाज और जनचेतना को गति देता है.

ब्लोगर, मीरा के पाँव क़ी घूँघरू है, जो कभी रूठती है, कभी खनकती है. वह जहाँ राधा क़ी 'चहकती कूक' है वहीँ, उर्मिला और यशोधरा क़ी 'गहरी वेदनामयी हूक' है. ब्लोगर एक कुशल आचार्य भी है जो अध्यात्म और प्रज्ञान की गूढता क़ी कठिन गाँठ को सर्व के लिए खोलता है.

ब्लोगर, आज बाजारू हो चुके चौथे स्तम्भ का, एक सार्थक विकल्प और युग की मांग है. ब्लोगर लोकतंत्र क़ी ज्वलंत आवाज... है, राष्ट्र क़ी संकृति, संस्कार का ऊर्जस्वी - तेजस्वी ताज है.

हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े? तुम ब्लोगर हो, एक सर्जक हो. तुम इस देश की पीड़ा भंजक हो. यह माना तुमको अधिकार नहीं, पर दायित्व को क्यों तुम भूलते हो? अपनी शक्ति क्यों तुम भूलते हो? क्या इस देश से तुमको प्यार नहीं? हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?

तुम्ही चिकित्सक, तुम सर्जन हो, शिक्षक हो तुम, तुम हो सन्यासी. तुम नदी - सरोवर तट के वासी. रहते हैं जो दूर गाँव में, तुम हो. जो रहते शीत गृहों में, तुम हो. तू विज्ञान रूप प्रयोगशाला में, तुम यति रूप, यज्ञशाला में.

क्षमता को अपनी तुम पहचानो, नया दायित्व अपना तुम जानो. तुम को ही, अलख जगाना है, भारत एक नया बनाना है. ऐसा भारत, जो भ्रष्ट न हो, ऐसा भारत, जो त्रस्त न हो. जो मजबूर न हो, किसी कोने से, जो भरपूर हो, चांदी - सोने से.


हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े? एक शंख, जोर से फूंको न. छेड़ो तान, जगें विस्तर से सब, अब रहे न कोई, निद्रा में. अब रहे न कोई, तन्द्रा में. देशभक्ति का पाठ, पढ़े वे फिर से, जो गए भटक, किसी कारण से.

हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े? छेड़ो ऐसा तुम, दीपक राग, घर - घर में जलती रहे चिराग. चाहे हो निर्धन या दुखियारा, हो दोनों समय चूल्हे में आग. अपनी रोटी मिल - बाँट के खाएं, मिल- बैठ के बिगड़ी बात बनायें.

हे ब्लोगर! तेरे हाथ मशाल, ऐसा प्रस्ताव कोई लाओ न, जनता को तुम समझाओ न. क्यों लूट रहे हो अपना देश? क्यों फूंक रहे हो, घर- दरवेश? लूटकर अपनों को, क्या पाओगे? जब आएगी समझ, सचमुच बहुत पछताओगे.

हे ब्लोगर! छेड़ो ऐसी झंकृत तान, गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान.. हो देश का जिससे, दुनिया में नाम. हम रहें सतर्क, करें खुद निगरानी, हों विफल शत्रु, उनके अरमान. एक खौफ सा, उनमे छा जाए. फिर दुबारा, आने का लेवें न नाम. हे ब्लोगर! छेड़ो ऐसी झंकृत तान, एक शंख, जोर से फूंको न. गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान..


14 comments:

  1. जबरदस्त सार्थक लेखन -
    कल ही मैंने चार कुंडलियाँ लिखी है |
    मेल कर रहा हूँ अलग से-
    पर प्रकाशित हुई है-
    पर तथ्यों के बारे में आपकी सलाह और मार्गदर्शन चाहिए -
    सादर ||

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  2. भाई नमस्कर,
    आपकी कुंडलियों ने तो गिरधर के कुंडलियों की याद दिला दी. ये नव कुण्डलियाँ मीडिया के मानवीकरण के रूप में अपने चरित्र और चिंतन के साथ साथ दायित्व बोध को भी संकेतित कर रहीं है. आपके दृष्टि बोध को २७ अगस्त को भी लखनऊ में सुनने का सुअवसर मिलेगा. प्रभावशाली वर्णन. आभार सलाह मांगने और इस योग्य समझने के लिए.

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  3. ब्लोगर: दिशा, दायित्व और दृष्टि का बड़ा ही प्रभाव शाली सार्थक चिंतन किया है आपने,,,बधाई ,,,
    जानकार खुशी हुई कि आप लखनऊ आ रहे है,,,,वही आपसे मुलाक़ात होगी,,,,

    RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,

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  4. नमस्कार,
    आभार आपका, हमेशा की तरह उत्साह वर्धन हेतु. मुझे भी ख़ुशी होगी लखनऊ में आपसे मिलकर. अभी तक जीनो देखा नहीं था उनमे से बहुत से लोगों से मिलाना-जुलना हो जायेगा. मुह्जे बेसब्री से प्रतीक्षा है.

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  5. ब्लॉगर के दायित्व और महत्व को सुरुचिपूर्ण शब्दों में समझाया ..
    निश्चित ही उत्साहवर्धन हुआ !

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  6. सार्थक चिंतन ... ब्लोगर ही ब्लोगिंग की दिशा तय करेंगे ... जागेंगे और कार्य भी करेंगे ...

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  7. सुप्रभात,,
    इस आलेख को पढने और सकारात्मक समीक्षा के लिए आभार. क्या आप भी लखनऊ आ रहे हैं? आयेंगे तो जरूर मुलाकात होगी.

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  8. वाह..ब्लोगर को इतना सम्मान..आभार !

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  9. बहुत सही विवेचना।
    यदि ब्लागर अपने सार्थक स्व को पहचान लें तो उसके कार्यों का असर पीढ़ियों तक प्रभावी रहेगा।
    उत्साहवर्द्धक आवाहन।

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  10. अनीता जी, भाई महेंद्र जी!
    आप पधारे आपका स्वागत और आभार. सम्मान एक ब्लोगर का होना ही चाहए और वह इसलिए नहीं की मैं स्वयं एक ब्लोगर हूँ इसलिए ऐसा कर रहा हूँ. यह सम्मान इस लिए भी आवश्यक है क्योकि यह उर्वरा शक्ति का कार्य करना है नए रचनाकारों के लिए. जो अच्छा और आदर्श सोचते हैं वे अच्छे है, लेकिन वे उनसे भी अधिक अच्छे हैं जो म केवल सोचते हैं अपितु लिपि बद्ध भी करते है. कार्य महत्पूर्ण है. कृति के बिना आदर्श वाक्य भी मूक मौन और निष्प्राण भी हैं. रचनाकार को मिलता तो कुछ नहीं, दूसरे लोग जब चार पैसे पैदा कर रहे होते हैं ये ब्लोग्गर के और मानिटर पर आख गडाए रहते हैं. समाज को बहुत कुछ देते हैं. यदि हम उन्हें यह सम्मान भी न दे सकें तो लगता है उनके साथ साथ अपने पर भी अर्याचार कर रहें हैं. मेरे लिए हर रचनाकार भले ही उसकी भाषा -शैली में वह बात न हो जो पेशेवर लोगों में होती है, लेकिन पेशेवर लोगों से वे लाखगुना अच्छे है.
    वे रचनाकार इसलिए हमारे श्रद्धा और प्रशंसा के अधिकारी हैं. उम्र चाहे उनकी छोटी ही क्यों न हो हमारे लिए एक मोडल हैं...आज नहीं हैं तो कल बन सकते है.. एक बात कहूँ जी केवल नाम और मान सम्मान के ब्लॉग पर आ रहा है वह टिक नहीं पायेगा अधिक दिनों तक यदि वह संवेदनशील, धैर्यवान और ऊर्जावान नहीं होगा. और यदि उसमे यह गुण हैं तो उसे सम्मान की आव्शाकता भी नहीं. हां उनका सम्मान करके प्रकारांतर सर हम अपना ही सम्मान करते है.

    भाई महेंद्र जी, मैंने आपका वह लेख, वह पीड़ा, आपके विचार आज पढ़ा चर्चा मंच पर जिसने आपने सम्मान को लेकर बहुत प्रश्न उठाये हैं. टिप्पणियों को भी मैंने पढ़ा है. कुल मिलाकर यह कहाँ चाहता हूँ कि क्या हम - आप यह सोचकर के पर बैठे थे कि हमें कोई सम्मानित कर..... सम्मान तो चरित्र, विचार, कृति और व्यक्त्तित्व का होता है. इब्मे त्रुटि न हो, क्या उचिं अट्टालिकाओं के नीव के पत्थर दीखते है? उन्हें खुश मीनार और बुर्ज को देख कर होती है.. मीनारें भी जानतीं हैं हमारा कोई मूल्य नहीं.. यदि नीव करवट ले ले तो हमारा क्या होने वाला है? अपने को ही समझने के लिए लिखा था एक बार.-

    पूछते हो चिन्तक को
    समाज से प्रतिदन में मिलता है क्या?
    परन्तु चिन्तक को कभी मान -सम्मान,
    मकान -दुकान की लिप्सा रही है क्या?
    पूछते हो चिन्तक भौतिक रूप में
    समाज को देता है क्या?
    अरे! चिन्तक ही समाज को
    बनाने सवारने और मिटाने की दावा है.
    यही विज्ञान रूप में सिद्धांत और संत रूप में दुआ है.

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  11. ब्लॉगिंग की सर्व श्रेष्ठ सार्थक और गहन तथ्यपूर्ण विवेचना!!
    डॉ. जय प्रकाश तिवारी जी का कृतज्ञता पूर्वक अभिनन्दन!!
    अनंत आभार!!

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