Friday, September 24, 2010

अक्षर से है सृष्टि विकास

कविता
और गीत
तो अन्यतम
साधना है -
शब्दों का.

और शब्द?
शब्द तो
आराधना है -
अक्षरों का.

इन अक्षरों
और शब्दों के
युग्म ने ही रचा है -
साहित्य, सदग्रंथ
और सृष्टि ग्रन्थ .

ये अक्षर ही हैं
जिन्हें हम कहते हैं
- "पञ्च महाभूत"

'अ' से अग्नि,
आ' से आकाश
'ग' से गगन,
ज' से जल
'स' से समीर,
'प' से प्रकाश

क्या इन्ही से
नहीं हुआ है
इस सृष्टि
का विकास

रचा सृष्टि ने
मानव को
मानव की अपनी
अलग सृष्टि है.

अपनी - अपनी
व्याख्या है अब
परख - परख
की अपनी दृष्टि.

11 comments:

  1. अच्छी पंक्तिया लिखी है ........

    यहाँ भी आये और अपनी बात कहे :-
    क्यों बाँट रहे है ये छोटे शब्द समाज को ...?

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  2. akshar brahm hote hain!
    bahut sundar likha hai aapne....
    regards,

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  3. Aadarniy Osho Rahnish ji

    हाँ भाई अक्षरों और शब्दों से ही सृष्टि और परंपरा का विकास हुआ है, किन्तु लोगों ने जाने - अनजाने इसका अपने अपने तरीके से व्याख्या किया है. तो इसका मुकर विरोध भी हुआ है और ख़ुशी की बात यह है की न्याय प्रिय लोग पहले भी थे और आज भी है. आज मिडिया के द्वारा प्रचार - प्रसार बहुत है, पहले नहीं था. जिस सूक्त "ब्रह्मानोस्यमुखं..." की चर्चा ऋग्वेद में है, उसका तो अर्थ ही यही है -- ब्रह्मण, क्षत्रिय, विषय, शूद्र ये तो विराट ब्रह्म के अंग हैं. विचारणीय प्रश्न यह है की क्या तब भी इस शब्द का यही अर्थ होता यदि नामकरण उलटे क्रम में होता. सोचिये मुख यदि शूद्र कहा गाया होता तो क्या होता? यही होता की शूद्र शब्द आदरणीय और वन्दनीय होता और ब्रह्मण शब्द आज के अर्थों में ....क्यों? क्योकि शब्दों कर अर्थ और मूल्य कार्य . दक्षता और आचरण में सान्निहित होते हैं. सब्दो में नहीं. ठीक उसी प्रकार जैसे यदि पहली बार कलम को पुस्तक नाम दिया गाया होता और पुस्तक को कलम, तो निश्चित जानिये जिन्हें हम आज कलम कह रहें, उसे पुस्तक कहते. और कहते की पुस्तक से एक बछो के लिए कलम लिख रहा हूँ. यह अटपटा नहीं लगता. सबकुछ आचरण, प्रयोग और एवं अर्थ रूधि हो जाने पर एक विशिष्ट अर्थ ग्रहण कर लेता है. मेरा आशय यह नहीं है की मै शूद्र शब्द को आच्रान्हीं बता रहा हूँ क्योकि इसमें अक्षरों का क्या दोष वे वही है - क ख ग घ ....चाहे इधर -उधर कर हम जहाँ रख दे. यदि हमें इस रूधि से बाहर आना है ती तो शूओद्र शब्द को इतना संवेदनशील, आच्रंशील, उद्दार, विनय, विवेकी और महनीय बना दिया जाय की यह पांडित्य और ज्ञानी शब्द को भी पछाड़ दे.
    शूद्र शब्द भी शब्द रूप में उतना ही पवित्र है जितना 'शब्द ब्रह्म'. हमारी शुभकामनाये आपके साथ है . यदि मेरा समर्थन चाहते है तो जिस दिन लगेगा की यह शब्द अपने नए अर्थ को पाने का प्रयास पूर्ण समर्पण और निश्छल होकर कर रहा है, मुझे आप बिना बुलाये अपने पीछे खडा पायेंगे. यह वादा नहीं संकल्प है. और मेरे लिए संकल्प का अर्थ है जिसका कोई विकल्प नहीं...धन्यवाद एक अच्छी चर्चा इसी बहाने हुई जिसकी आवश्यकता पहले भी थी और आज भी है. कृपया अपनी भावनाओं से अवश्य अवगत कराये एक मित्र मानकर. यहीअनुरोध है साधुवाद....और नमस्कार.

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  4. श्रीमान मैं आपका प्रशंसक हूँ । और आपसे मार्गदर्शन की आशा रखता हूँ

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  5. Anupma ji

    Thanks for visit and creative comments

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  6. Udai ji
    Also treat same. What can I do for you. I will be pleased if you provide me something as you want....

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  7. ये अक्षर ही हैं
    जिन्हें हम कहते हैं
    - "पञ्च महाभूत"

    बिल्कुल …………बिना अक्षर के तो कोई आकार दिया ही नही जा सकता…………………।फिर तो निराकार ही है…………………और जब आकार दिया है तो सबकी दृष्टि भी अलग होगी और सोच भी………………बेहद उम्दा प्रस्तुति।

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  8. वाह , सचमुच अद्भुत चिंतन , भृगु मुनि की पावन नगरी का प्रभाव विलक्षण है

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  9. अच्छी सोच ..चिंतन करने योग्य

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  10. रचा सृष्टि ने मानव को, मानव की अपनी अलग सृष्टि है। दार्शनिक अर्थों वाली अच्छी कविता।

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  11. अक्षर ही ब्रह्म है....बहुत ही गहन चिंतनीय अभिव्यक्ति...आभार....

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