Wednesday, September 8, 2010

कब आएगा श्वेत सवेरा.

कहते - पूछते तकते नहीं थे
'देखो छाया तिमिर धनेरा
कब आएगा, कब आएगा?
प्रातः उजला - श्वेत सवेरा.

कहा जो उनसे चौक गए वे
चलते - चलते अटक गए वे.
'देख रहे अंधेर का पत जो'
वह मन का घोर कपट है.

मन के इस कपट को
धूर्तता को, छल को
यदि गगन से हमें हटाना है,
लो मिट्टी और करो संकल्प:
अब इसको हमें जलाना है.

छलिया है भागेगा नहीं यह
रूप बदलकर आएगा
बन्दर सा नाच दिखायेगा
फिर से हमें फँसाएगा.

करना है यदि इसे नियंत्रित
ले डमरू और छड़ी हाथ में
नट हमको बन जाना है
अनूठा खेल दिखाना है.

मन ने बहुत नचाया हमको
अब मन को हमी नचाएंगे.
देखो आता मजा है कितना,
जब बंदरिया इसे ही बनायेंगे.

10 comments:

  1. कहते - पूछते तकते नहीं थे
    'देखो छाया तिमिर धनेरा
    कब आएगा, कब आएगा?
    प्रातः उजला - श्वेत सवेरा......bahut badhiya sir.

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  2. मन ही तो माया है अब आपने इसे पछाड़ने का मन बनाया है,
    बहुत बड़ा बीड़ा हाथ में उठाया है !कविता अच्छी लगी.

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  3. गौरव का प्रणाम स्वीकार करें !!
    आपके ब्लॉग के हर पोस्ट को मै पढता हूँ, टिप्पणी करना चाहता हूँ, पर जब टिपण्णी करने के लिए शब्दों की तलाश करता हूँ तो वे मुझे छोड़कर चले जाते हैं, और बुलाने पर कहते हैं हम इस काबिल नहीं की इस ब्लॉग के किसी भी पोस्ट पर टिपण्णी कर सकें .........
    सच कहूँ तो मै भी इस काबिल नहीं की कोई टिपण्णी कर सकूँ, बस मै ईश्वर के आपके स्वस्थ समृद्ध और दीर्घायु जीवन की प्रार्थना करता हूँ और आपसे आशीर्वाद और मार्गदर्शन की कामना करता हूँ !!

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  4. Hi..

    Kitna hi koi saadhe par...
    Man ko na hai sadh saka..
    man ke bandar ko nat bankar...
    koi bhi na hai bandh saka...

    Koshish kar len....yahi sabke haath hai...

    Sundar bhav...

    Deepak...

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  5. मन ने बहुत नचाया हमको
    अब मन को हमी नचाएंगे.
    देखो आता मजा है कितना,
    जब बंदरिया इसे ही बनायेंगे.
    ......मन को बस में कर लेना मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है....बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया......

    http://sharmakailashc.blogspot.com/

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  6. मन ने बहुत नचाया हमको
    अब मन को हमी नचाएंगे.
    देखो आता मजा है कितना,
    जब बंदरिया इसे ही बनायेंगे

    क्या बात है...बहुत सुन्दर भाव

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  7. सभी भाई बहनों को सस्नेह नमस्कार!!
    क्षमा याचना के साथ, मैं आज ही (१४.९.को )अभी- अभी लखनऊ आया हूँ. नेट खोला ढेर सारा प्यारा - प्यारा कमेंट्स और टिप्पणियां पढने को मिली. मै हैरान हूँ की आप लोग इतना स्नेह करते हैं. टिप्पणियों की संख्या भले ही आधे दर्जन हों परन्तु सच मानिए इसमें जो भाव है वह सैकड़ों तीपानियों में भी नहीं मिल पाता. कुछ भाइयों ने मेरे प्रति अत्यंत आदर भाव प्रदर्शित करते हुए मुझे अपने से अलग एक ऊंची कुर्सी पर बिठाने का प्रयास किया है. मेरा उनसे अनुरोध है, भाई ऐसा न करे. मैं तो आप के साथ ही रहूंगा चाहे जमीं पर बैठना हो या कुर्सी अथवा मंच पर. मै आपके साथ बिना अधूरा हूँ. यदि साथ की आवश्यकता न होती तो शायद ब्लॉग लेखन कार्य की सुरूआत भी न हो पाती. आप मेरे साथ है यही हमारा बल और संबल दोनों है. यहाँ कोई बड़ा छोटा, ज्ञानी- अज्ञानी नहीं है. यदि किसी को यह लगता है जैसा की एक भाई ने लिखा है मार्ग दर्शन के लिए तो मै जिस भी लायक हूँ अपनी पूरी क्षमता और सामर्थ्य के साथ त्रियार हूँ. अस्तु फिर मिलेंगे. सभी एक बार पुनः नमस्कार. हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के साथ.

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  8. बेहतरीन सुन्दर भाव |

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  9. Anjana ji

    Thanks for participation and valuable comments

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