Saturday, August 7, 2010

कुम्भ सा बने मेरा जीवन

यह कुम्भ तो
एक प्रतीक है
मृत्तिका में छिपे
अनुपम सौंदर्य का.

मृत्तिका के
औदार्य का,
मृत्तिका की
रचना धर्मिता का.

मृत्तिका में घुले
मानव कला का.
मृत्तिका रूप में
मानव जीवन का.

कुम्भ में भरा है - जल
कुम्भ में भरा है - अन्न
कुम्भ में भरा है - द्रव्य
कुम्भ जब है - खाली
तब भी भरा है - उसमे
प्राणदायी संजीवनी वायु.

परन्तु
किसके लिए ?
सब कुछ है -
परार्थ निःस्वार्थ
उसका कुछ भी
नही है - स्वार्थ.

कुम्भ बताता है
इस निखार का रहस्य
निर्माण के पूर्व कुचला जाना
मसला जाना, रौंदा जाना
आग में जलकर और भी
निखर जाना उपयोगी होना...

3 comments:

  1. वाह वाह वाह्………………बेहद सुन्दर और सार्थक रचना जीवन बोध कराती है।

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  2. बहुत सार्थक रचना...........जीवन रहस्य उजागर करती हुई............

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  3. Vandana ji & Suman ji

    Aap dono sundad man wali hai "Suman hain", isliye vandniiy hain "Vandana" hain, aaradhna hain aur kaavymayi saadhna hain. Thanks for valuable comments

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