Thursday, July 1, 2010

काश! ऐसा हुआ होता.

सजल नयनों की भाषा,
यदि पढ़ लिया होता,
मूक आमन्त्रण को,
यदि समझ लिया होता.

मौन की आवाज को,
यदि शब्द दे दिया होता,
आत्मपीड़क न बन,
चाहत को बयां किया होता,

दिल की बात यदि,
होठों पर ला दिया होता.
तुम्हारे अंतर का भी ज्वार,
यदि समय से पवां चढ़ा होता,

यह सही है, मै ही चुप था,
तुम्ही ने कुछ कहा होता.
तो ..तो..जो शायद जो कुछ
भी हुआ, नहीं हुआ होता.
काश! कुछ ऐसा हुआ होता.

(करीब २८-३० वर्ष पूर्व विद्यार्थी जीवन की रचना)

2 comments:

  1. kya khoob likha hai.......sach kabhi kabhi kah dena sukhkar hota hai ........kash sab apne man ki kah pate to wo na hota jo hua tha.........kya khoob bhav hain.

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  2. वंदनाजी नमस्कार
    आपकी सारगर्भित तिपन्निओन ने हमेशा ही एक नई उर्जा प्रदान की है. जब आप जैसे लोग पढ़ते है समलोचना करते हैं तो उत्साह बढ़ जाता है. बहुत बहुत बधाई आपने जोश बढ़ाई.

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