धुधली - धुधली सी रजनी थी,
पीपल भी नहीं था डोल रहा,
कुछ ठनी हुई थी पवन के संग,
रजनीश भी मेघ के अन्दर था.
व्योम के नीचे अम्बर है,
अम्बर के नीचे एक टिम्बर है,
उस टिम्बर में कोई हलचल है,
मैंने सोचा कोई बन्दर है.
पंहुचा पास जब मै उसके,
था बहुत सतर्क; फिर भी उसने,
था एक झपट्टा मार दिया,
उछल - कूद के वार किया.
मै भी था कुछ कम तो नहीं,
बाजू में उसे फिर जकड लिया,
जब कड़े - कड़े दो हाथ पड़े,
चिल्लाया फिर वह 'बाप - बाप'.
गौर से देखा जब उसको....,
वह बंदर के वेश लफंदर था.
था पढ़ा - लिखा कुछ ख़ास नहीं,
दो कलम जेब के अन्दर था.
पड़ी जेब में डायरी थी,
जिसमे ढेर सा नम्बर था.
कुछ बड़े - बड़े थे नाम पते,
उसमे एक गुप्त कलेंडर था.
जिसे देख उड़ जाए होश,
ऐसी चीज भी उसके अंदर था.
था बिलकुल वह 'रावण' जैसा,
वेश बदल कर आया था.
था किसी और के चक्कर में,
भ्रम से पड़ा मेरे पल्ले था.
मै भी बन गया था 'बाली' तब,
सब कुछ उससे बकवा डाला.
रह गया 'सन्न' एकदम से मै,
आ दुश्मन ने डेरा डाला था.
थी दूर कि कोई बात नहीं,
मेरे ऑफिस का ही सौदा था.
बन बगुला भगत वह बोल रहा,
"है स्टाफ आपका डोल रहा,
पहले संभालिय अपनों को,
क्यों 'डालर' पर वह लोट रहा" ?
थे सहयोगीगण जांबाज सभी,
देश पर मर - मिटने वाले,
उनमे था बिका हुआ फिर कौन?
प्रश्नों ने मुझको मथ डाले.
मै लीन इन्ही सब बातो में,
शिर उठा मेरा, जब शोर हुआ.
मै जिसे पकडकर लाया था,
था गिरकर, वह अब ढेर पड़ा.
खा लिया था; उसने वह 'कैप्सूल' जिसे,
साथमें लाया था, जाने कहाँ छिपाया था?
वह तो सीधे परलोक गया ..........,
पर जटिल प्रश्न .....था .....छोड़ गया.
अब राज यह कैसे खुल पायेगा?
कलंक यह कैसे धुल पायेगा?
हुआ अबतक तो कोई हानि नहीं,
फिर आगे अब क्या होगा?
शक करे तो कैसे साथी पर?
ना करें तो क्या आघात होगा?
काश! कहीं कुछ ऐसा हो जाए,
आरोप लफंदर का मिथ्या हो जाए.
waah badi hi sandeshparak kavita..badhiya tukbandi k sath
ReplyDeleteबहुत बढिया!!
ReplyDeleteयह आप लोग ही तो हैं जिनसे प्रेरणा, बल, और लिखने का उत्साह जागृत होता है . यह आप ही जैसे उर्जस्वी और संवेदनशीलों के मन की भाषा है, और आप को है समर्पित है-. 'तेरा तुझको अर्पण'. मेरा कम तो केवल इतना है -"का चुप साधी रहा बलवाना ". सार्थक और उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए साधुवाद .
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