हे स्वप्न सुन्दरी बात सुनो!
इतना तुम क्यों शर्माती हो?
दिन में क्यों नजर नहीं आती?
बस ख़्वाबों में मुस्काती हो.
क्यों दिखती केवल श्रीमानों को ही,
तेरी गुणगान सदा वे करते है,
सारी प्रगति, सब काम नदारत,
जिस बात को मंच से कहते हैं.
क्या उनसे तेरा कोई नाता है?
जो दोनों ही नजर नहीं आते,
तुम रूपवती हो केवल रातों में,
उनका सब काम है, केवल बांतो में.
अस्तित्व तुम्हारा कुछ भी नहीं,
सारे वादे भी उनके झूठे हैं,
क्या जन्म तेरा हुआ झूठो से?
वे दिन रात ही झूठ में पलते हैं.
तुम रहती केवल घंटे पांच,
वे पांच वर्ष तक रहते हैं.
क्या बतलाऊ अब कहूं कैसे?
कैसे ये वर्ष फिर कटते हैं?
अनुरोध हमारा है तुमसे,
कभी सच भी तुम बन जाया करो,
दिन में भी झलक दिखलाया करो.
क्या पता सुधर जाएँ वे भी ?
कुछ ऐसी दया दिखलाया करो.
ati sundar....
ReplyDeleteDilip ji
ReplyDeleteYhanks.