भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक मित्रो,
विश्वशांति के प्रेरक,प्रकृति के कुशल सहचर,
विश्ववन्धुत्व के संवाहक,मुझ जैसे विप्र के
दर्द को सुनो, कुछ प्रश्न हैं, उनपर गुनों.
हमें कष्ट है की चिंतन के क्षेत्र में इतने,
समृद्धिशाली होते हुए भी,पश्चिमोन्मुख क्यों है?
शून्य और दाशमिक प्रणाली को भारत की देन,
तो अब प्रायः सबने स्वीकार ली है, परन्तु;
क्या आप जानते हैं कि जिस इलेक्ट्रानिक्स और
क्म्पुत्रोनिक्स की आज धूम मची है, जिसका आधार,
पाश्चात्य जगत 'ओम्स ला' को समझता है, वह
हमारे ही भागीरथ सूत्र का पत्वार्तित रूप है?
इन्द्र - वृत्तासुर की लड़ाई को मात्र कथा - कहानी
समझनेवाले, इसके वैज्ञानिक पक्ष से अपरिचित क्यों हैं?
यह तो विशुद्ध रूप से ओजोन परत की समस्या
और उसका सम्यक निदान समाधान है.
आइन्स्टीन और हॉकिंस की देन समझी
जानेवाली 'ब्लैकहोल थियरी' का मूल,
ऋग्वेदीय 'हिरण्यगर्भ सिद्धांत' है.
प्रकाशमिति कहती है - ब्लैकहोल से,
असंभव है - परावर्तन. हाकिंस तो
चुप हो गए, इस सिद्धांत को उलटकर कि,
ब्लैकहोल से भी होता है - परावर्तन.
परन्तु किस रंग की ? इस प्रश्न पर,
वे आज भी मौन हैं,आगे जानने को बेचैन हैं.
उनकी तीक्ष्ण बुद्धि को इस बात का आभास
है कि, इसका उत्तर भारत के ही पास है.
अत्यंत रूग्नावास्था, बीमारी की पराकाष्ठा में भी
उनका भारत आगमन, इसी खोज का
एक प्रयास था शायद, परन्तु न जाने क्योँ ?
हम भारतवासी उससमय आगे बढ़ नहीं पाये, उनकी
क्यों जिज्ञासाओं का शमन कर नहीं पाये ?
यदि ऐसा हुआ होता; हमें वैज्ञानिक अभिव्यक्ति का
एक सशक्त माध्यम मिला होता,और भारतीय-दर्शन का,
परचम पाश्चात्य जगत में लहराया होता ?
यह सत्य है कि इसका उत्तर भारत वर्ष के ही पास है.
यह भारतीय विद्या ही है जो यह उदघोष करती है.
कि ब्लैकहोल का प्रारंभिक रंग काला, मध्य काल में
यह लाल, और अन्तकाल में सुवर्ण है. परन्तु
आज हम अपनी ही विद्या से अनजान क्यों हैं?
संस्कृति के तीन सर्वश्रेष्ठ उपमान जिन्हें हम
ब्रह्मा-विष्णु-महेश के रूप में जानते पहचानते हैं;
उनकी भी परीक्षा लेने वाला कौन है ?
हम सब महर्षि भृगु के वंशज, अनुसुइया के संतान,
इस तथ्य से अबतक अनजान क्यों हैं ?
हम भारतीय कापुरुष तो रहे नहीं कभी, अब
संस्कृति सागर में गोता लगाने से भयभीत क्यों हैं ?
और अमूल्य रत्नगर्भा हमारी संस्कृति
आज इतनी उपेक्षित क्यों हैं? क्यों हैं?
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