Tuesday, June 15, 2010

नक्सलियों से एक इंटरव्यू

समाचारों में पढ़ा, टीवी में भी देखा,
ये नक्सली अब बौखला से गए हैं.
मरने - मारने पर उतारू तो थे ही,
अब जन सामान्य पर तो पूरी तरह
कहर बन कर छा गए हैं.
ट्रेन और बसों को उड़ा गए हैं.
ऐसी ही ख़बरें पढ़ते-पढ़ते ना जाने कब?
नीद की आगोश में समां गया, अथवा
कोई नक्सली आप बीती सुनाने उठा ले गया.


मैंने देखा:
उनके घरों को, झोपड़ पट्टे को,
अधपके मोटे चावल ......,
बिना नमक - तेल की सब्जी को.
उसने दिखाया अपनी स्थिति,
...रो रहे बच्चे को.
बोला - भूखा है यह,
इसकी माँ को दूध नहीं उतरता,
गाँव में कोई दूध नहीं देता,
कोई काम नहीं देता.


मैंने कहा:
तुम लोग शहर जाकर
कोई काम धंधा क्यों नहीं करते?
शहर जाने का किराया नहीं,
बिचौलिया पैसा नहीं देता.
ठीकेदार कमीशन ही नहीं खाता,
घरवाली पर डोरे भी डालता साब.
ऐसे पैसे वालों को हम क्यों छोड़ेगा साब ?


परन्तु तुम लोग
ट्रेन यात्रियों को क्यों मारते हो?
ये भी ठीकेदार और बनियों का
साथी होता साब, जेब में पैसा है,.
तभी तो ए.सी. में और ...
स्लीपर में चलता साब.
सरकार सारा डिब्बा एक जैसा
क्यों नहीं बनाता साब?
उनका पेट फूला -फूला और
हमारा पीठ में क्यों घुसा साब?
ये यात्री लोग हमें अपना भाई - वाई
कुछ नहीं मानता साब,
एक दिन ना चलने से,
इनका क्या बिगड़ता साब?
हमारी आवाज सरकार,
कुछ तो सुनता साब.
ये जब हमको अपना नहीं मानता,
हम क्यों माने साब?
हमारे एरिया में एक भी स्कूल,
अस्पताल क्यों नहीं साब?
आज बड़ों के बच्चे कंप्यूटर चलाते
और हमारे अंगूठा लगाते साब.



आखिर ऐसा कब तक चलेगा साब?
क्या आजादी के लिए हमारे पुरखे नहीं लड़े?
इन्हीं पेड़ों में मेरे दादा को रस्सी से बाँध कर
लटका दिया था फिरंगियों ने.
बापू बताता था, अपनी पीठ पर
कोड़े का निशान दिखाता था.
फिरंगियों से तो बच गया था,
देश के सूदखोरों से नहीं बच पाया.
इन्ही कटीली झाड़ियों में घसीटा था,
बहुत बेइज्जत किया था........
खून उगल कर मरा था.............,
बाप मेरा, इसी जगह पर साब.
क्या जन्म लेना अपने हाथ में है साब?
हाथ में होता, किसी बड़े के यहाँ जन्म लेता.
हेलीकोप्टर में, जहाज में, झूला झूलता साब .
यह बिधाता का लेखा है, हमारे साथ तो धोखा है.



मैंने पूछा-
हथियार कहाँ से लाते हो?
रहस्यमयी मुस्कान होठो पे लाकर बोला,
साब आप भी अजीब बात करता है.
साहब लोग बोरा के बोरा नोट कहाँ से लाता है?
उसी को छीनते हैं, अपना पेट भरते हैं
और बाकी जो बचता है,
उससे हथियार खरीदते है.
यदि बोरे के नोट बंद हो जाय,
हथियार बंद हो जाएगा साब.
परन्तु हम जानते हैं, यह बंद नहीं होगा.
ना आप लोग जनता को लूटना बंद करेगा,
ना हम आप को लूटना बंद करेगा.
यह तो इन्साफ की बात है साब,
आप खाते- खाते मरेगा, हम भूखों मरेगा.
यह नहीं होगा साब, कभी नहीं होगा.


मैंने कहा -
क्या अपने मुखिया से मिलाओगे,
.......... कुछ बात - वात कराओगे?
वह बोला, शाम को मिलेगा साब,
इस समय हथियारों के डीलर के पास गया है.
वह कहाँ रहता है? ...
.कुछ दूसरे नेता भी तो होंगे, उन्हें बुलाओ


अरे रग्घू काका!
देखो एक साहब आया है
तुम्हे बुलाया है,
अपनी बात सरकार तक पहुचाने की,
बात करता है, और अपने को
एक पत्रकार कहता है.
आगंतुक बोला, बातों में
शायराना अंदाज का मिसरी घोला.


यदि हँसना जो चाहा हमने,
अरे कौन सा गुनाह किया हमने?
तुम्हे क्या पता, एक पल के लिए,
क्या- क्या नहीं सहा है हमने?
जागृत हुई है चेतना जब से,
दर्द से नाता रहा है तब से.
कितनी राते रो - रो के गुजारी,
पूछो इस बूढ़े अश्वत्थ से.
फिर भी है गर्व, लिया है जन्म
इसी जमी पे, यह समाज मेरा घर है.
आज नहीं दे रहा तो क्या है?
आगे मिलने का अवसर तो है.
यह विश्वास जगाये बैठा....,
आशा बहुत लगाये बैठा.....
उम्र हुई अब साठ बरस की,
हाथ ना अब तक है कुछ आया.
भटक गयी संताने अपनी,
रोका-टोका, पर समझ ना आया.
कहते हैं हक लेंगे अपना,
हम बन्दूक की नोक से,
नोच भगायेंगे इन सबको,
जकड़े हैं जो जोंक से.


लेकिन यह तो गलत है,
बिलकुल अनुचित मार्ग है यह,
उन्हें समाज की
मुख्य धारा में लौटना होगा,
बातों से हल निकालना होगा,
सरकार भी संवेदनहीन नहीं है.
अब आगे कदम बढ़ाना होगा,
वार्ता की मेज पर आना होगा.


तब तक किसी ने,
मेरे सिर को जोर से झकझोरा....
देखा, श्रीमतीजी हाथ में
चाय का प्याला लिए खड़ी है,
बोली - शादी के पहले
तो मेरा नाम जपते थे,
अब शादी के बाद,
यह किसका जाप कर रहे हो?
मै झल्लाया, चीखा, चिल्लाया,
तुम यहाँ भी टांग अड़ा गयी.
मै नक्सलियों की बस्ती में गया था,
कोई समझौता हो गया होता,
कोई फ़ॉर्मूला, कोई बीच का
रास्ता निकल गया होता....,
तो मेरा भी काम बन गया होता,
नाम के साथ दाम भी मिला होता.
कोरी पत्रकारिता से क्या होगा?
चाय की चाय ही रहेगी.
ये नक्सली भी वीरप्पन से कम नहीं,
देखा था, उस समय कितनो की चाँदी थी.
हाय! मालामाल होने का,
हाथ आया एक अवसर गया.
हर बार की तरह इस बार भी
यह सेहरा, तेरे ही सिर गया

1 comment:

  1. Namaskar ji,
    Thanks for reading my article and comments. Your profile or link not available. Pl provide in detail. What we have to do?

    ReplyDelete