Monday, January 26, 2015

कविता तो मन की बेटी है

कविता तो मन की बेटी है
वह आह वाह में पैदा होती
कविता का दर्द से गहरा नाता
यह कविता दर्द से पैदा होती
...
प्रिय विछोह जब भी होता है
विरह काव्य वह रच जाता है
नहीं मिलते यदि शब्द उसे
पलकों से धीमे से बह जाता

उमंग - तरंग की बात अलग
इसमें भी कविता तैरती है
मन तक ही सीमित नहीं रहती
वह दिक् दिगंत तक फैलाती है

डॉ जयप्रकाश तिवारी

Sunday, January 25, 2015

वह एक स्पर्श

वह शाम ए अवध 
का कोई एक पल था 
या सुबह ए काशी का 
ठीक - ठीक याद नहीं 
वह इंडिया गेट था
या हर की पैड़ी
कौन सी थी वो घडी? 
अब यह भी याद नहीं,
उस 'एक स्पर्श' के बाद 
मुझे कुछ याद न रहा 
यदि याद है कुछ तो 
वही, वह एक स्पर्श 
जिससे सब कुछ 
मैंने पा लिया था,
जिसमे सबकुछ 
मैंने खो दिया था 
अब फिर उस स्पर्श का
संस्पर्श भी नहीं चाहता 
वैसा हो भी नहीं सकता 
स्वतः स्फूर्त नैसर्गिक था 
न सोचा समझा था 
न वह बनावटी था। 

डॉ जयप्रकाश तिवारी 

Saturday, January 24, 2015

माँ शारदे से प्रश्न


माँ!
आज तुम्ही
यह बतलाओ,...
मन की उलझन
तुम सुलझाओ.
मन सोच सोच के
हार गया,
'काव्य' यह मेरे
समझ न आया,

क्या है कविता?
एक उपासना.
कविता साध्य है
या साधना?
कविता लक्ष्य है
या आराधना?
कविता यथार्थ है
या भावना?
कविता बोध है
या संभावना?
कविता अश्रुधार है
या अभिव्यक्ति?
कविता उच्छ्वास है
या आभ्यंतरशक्ति?
कविता प्रणय है या
समर्पण और भक्ति?
कविता कोलाहल है
या पूर्ण संतृप्ति?
कविता हलाहल है
या जीवन का वरदान?
कविता अंतर की शांति है
या अतृप्त अरमान?
कविता सन्देश है,
प्रदर्शन है या अभिमान?
कविता निजत्व का
विलोपन है या पहचान?
कविता उत्साह है
या बहकता एक उमंग?
कविता एक धार है
या उठती हुई तरंग?
कविता एक विकार है
या जीवन का रंग?
कविता भौतिकता है
या एक सत्संग?
कविता.
कृति है मानव की,
फिर मानव है
कृति किसकी?
मानव.
सृष्टि की कविता है;
सृष्टि यह.
कविता है किसकी?

-डॉ. जय प्रकाश तिवारी

Thursday, January 22, 2015

क्या दर्द वही जो...

क्या दर्द वही जो छलक पड़ता? 
क्या दर्द वही जो लोचन बहता? 
क्या  वही जिससे मन में गुबार 
यदि दर्द यही, तो क्या है वह ?
अंतर में जो घुटता रहता है 
आता ही नहीं बाहर  को जो 
विदग्ध लहर जो जःता है 
औ पीकर नयनों का खारा जल
उसे शुष्क किये जो रहता है 

डॉ जयप्रकाश तिवारी  

Tuesday, January 20, 2015

मैं हूँ एक राही पथ का अपने

मैं हूँ एक राही पथ का अपने
इसी पथ पर देखे कुछ सपने
करने साकार उसे निकल पड़ा हूँ
देखा नहीं साथ कितने हैं अपने,
मैं वो राही जिसने कभी न जाना ...
होता क्या है,पथ पर रुक जाना
सीखा नहीं, कभी सर को झुकाना
झुकता यह वहीँ जहाँ इसे झुकाना
नहीं चिंता, मंज़िल मिले, न मिले
मैं तो यह जानता, अब रुकना नहीं
चाहूँ भी रुकना यदि कभी तो चेतना
राह में मुझको नहीं रुकने ये देगी
चरमरा के जी रहा, पर चल रहा हूँ
मर-मर के जी रहा , पर चल रहा हूँ
कहेगी क्यादुनिया, नहीं मैं जानता
किन्तु स्व को तो हूँ मैं पहचानता
पहचान ही सम्बल है मेरा एक मात्र
पहचान ही कारण है मेरी गति का
कुछ को लगता है, मैं सो रहा हूँ
और लगता कुछ को, मैं रो रहा हूँ
क्या पता उनको कि इस राह में
हंसकर रोना, रोकर हँसना, पड़ाव है
यात्रा है यह, नहीं कोई ठहराव है।

डॉ जयप्रकाश तिवारी

Thursday, January 15, 2015

gazal

अँधेरा हो या दिन का उजाला यादों ने तसल्ली दी। 
कैसी याद है तेरी जिसने बगावटी चिंगारी फूंक दी। . 
 
तुझे कुछ पता भी है, इससे कुछ नहीं होगा हासिल। 
दिल- दिमाग के साथ-साथ व्यवस्था बदलनी होगी। 
 
यहाँ घोर अँधेरा गली में ही नहीं,इन दिलों में भी बसा है.. 
तू दीपक बन चिंगारी बन तम दूर भगा दिलों में बसा है 
 
मायूस उदासी ने इस समाज को गमगीन बना दिया है 
आंसू नहीं स्वेद बहा,नेतृत्व कर, गूँजे,गतिशील किया है।   
 
तलवार उठाने से कुछ नहीं होगा,औचित्य का प्रश्न उठा। 
व्यवस्था बदल, सिद्धान्त बदल, तू नेतृत्व का प्रश्न उठा। 

डॉ जयप्रकाश तिवारी 

Monday, January 12, 2015

इस ग़ज़ल ने कहा

इस ग़ज़ल ने कहा था जिंदगी गुनगुनाकर देखिये 
जिंदगी संवर जायेगी, प्यार के सुमन खिल जाएंगे 

तब से रोज गुनगुना रहा हूँ, उँगलियों को जल रहा हूँ 
पूछती है बीबी क्या कर रहे हो?बताते हुए शर्मा रहा हूँ 

लो आ गयी किचन में, बोली वाह! कितने अच्छे हो 
मेरे नहाने के लिए पानी अभी से ही गुनगुना रहे हो 

सचमुच इस ग़ज़ल ने तो प्यार करना ही सीखा दिया 
अब रोज गुनगुनाता हूँ, पानी के साथ चाय भी गर्माता हूँ 

थैंक्स तूने जिंदगी सवार दी, मीठी छुरी सीने में उतार दी 
ग़ज़ल मुस्कुराई हौले से मेरा हाथ दबाई, और पूछ ही बैठी 

न जाने लोग गज़लें क्यों ढूंढते हैं शायरी की किताबों में?
मैं तो उनके अंतर में बसती, देखते ही नहीं अंदरखाने मे.  

                                     डॉ जयप्रकाश तिवारी