Sunday, February 13, 2011

जिन्होंने 'मृत्यु-सौन्दर्य' को पहचाना.




बलिया की मिट्टी में जन्मे,
'मंगल' ने जब ललकारा था...
'अंग्रेजों तुम भारत छोड़ो..,
यह हिन्दुस्तान हमारा है..'.
उतर पड़े तब पहन के चोला
केसरिया सब बलिदानी रे..., 
वो भी टीम क्या टीम थी भैया, 
जिसमे सम्मिलित थे जो साथी,
उन्हें राजा-रानी-प्रजा मत कहो!.
वतन के वे स्वाभिमानी थे.. .
मृत्यु की इस सौन्दर्य पे भाई I
लाखों जीवन कुर्बान है भाई !.
'जीवन' जो नहीं कर सकता..
'मृत्यु' उसे पूरी करती है..
लेकिन यह भी सच है भैया !
मरना नहीं  आता है सबको
जो जीना भी सीख नहीं पाए,
भला मरना वे क्या जानेंगे ?
क्या मृत्यु सौंदर्य पहचानेंगे ?
क्या मृत्यु के सत्य को जानेंगे ?
कुछ तो मरते है - एकबार,
कुछ एक ही दिन में कईबार..
दुःख को जग से पुनः मिटाने
बुद्ध को 'मैत्रेय' रूप में आना है.
आना तो है हरि को भी अब,
'कल्कि' रूप में आना है ...
वादा अपना जो निभाना है.
फिर बात वही दुहराता हूँ ..
मृत्यु समापन नहीं, सृजन है..,
यह मृत्यु का ही 'महागर्जन' है.