Sunday, June 24, 2012

...कितना है कठिन?


सात फेरों के बाद भी
जब सुर नहीं मिलते यहाँ.
दुनिया के इस सफ़र में
साथ बैठने से ही, साथ हैं हम,
कहना यह कितना है कठिन?

जब निवाला भी
छिन जाता हो मुह से,
थाली में राखी यह रोटी
हमारी ही है.
यह दावा करना आज 
कितना है कठिन?

हम निकलते है 
घर से बाहर प्रतिदिन,
लौटकर सकुशल आएंगे ही
करना यह आश्वस्त
आज कितना है कठिन?

सुरक्षित चलते हैं,
नियमों को पलते है, ठीक है.
ये भागम भाग वाले,
मोबाईल धारक चालक,
सुरक्षित चलेंगे ही,
करना यह विश्वास 
आज कितना है कठिन?

करते हो नमस्कार,
यह आदत और शालीनता तेरी,
अगला तुरंत सोचता है,
कोई काम होगा.
वह जवाब भी देगा,
कहना आज यह कितना कठिन?

         जय प्रकाश तिवारी
         संपर्क: ९४५०८०२२४०