Saturday, April 16, 2011

धैर्य और सत्साहस को सलाम



संकट और प्राकृतिक आपदाओं में
प्रायः टूट से जाते हैं सामान्य लोग,
हो जाते है बहुत निराश और भ्रमित.
किन्तु देखो जरा साहसी जापान को,
इस घोर आपदा... की बेला में भी...;
है कितना क्रियाशील और संयमित.

है अत्यंत सराहनीय - प्रशंसनीय
जापानियों की दुर्घर्ष जिजीविषा, 
अदम्य साहस, अनुपम निष्ठा-धैर्य.
और पुनः - पुनः संभल उठने की
उसकी अद्भुत कला, जीवन शैली.

है वह जानता भलीभांति अब...
रोने से नहीं है काम चलनेवाला.
दिखावे वाले, नकली आंसू वाले,
साथ निभाने का वादा करनेवाले, 
आज मिल जायेंगे बहुत ढेर सारे..
लेकिन आगे खुद ही आना होगा,
तो क्यों न तैयार कर लिया जाय,
स्वयं को ही, लाभ क्या निराशा से?

है यह निश्चितरूप से उनके लिए -
एक 'परीक्षा' और 'अपेक्षा' की घड़ी.
लेकिन परीक्षार्थी के लिए अपेक्षा से
कहीं बहुत महत्वपूर्ण है यह 'परीक्षा'.
यह परीक्षा ही करती है मार्ग प्रशस्त;
उन्नत उज्ज्वल भविष्य का निर्धारण.
अपेक्षा तो बनाती है परावलम्बी,
यह है बाधक बनने में स्वावलंबी.
फिर भी है इसका तात्कालिक महत्व.
लेकिन केवल तात्कालिक, प्राथमिक.

जो लोग बना लेते हैं अपेक्षा को ही
अपना मूल धरातल, बन जाते हैं वे
आग्रही - दुराग्रही और परावलम्बी.
धन्य है जापान का अदम्य साहस,
आत्मबल, यह धैर्य और सत्साहस.
उसकी अद्भुत जिजीविषा को सलाम.
जिसके दम पर कर लेगा पुनर्निर्माण.