Tuesday, July 19, 2011

वेदनाओं का 'हार' चढ़ाता हूँ

तोडूंगा तो नहीं मै उसको,
जिसको पूजा था अब तक.
हाँ बहा दिया है संचित सपना,
जिसे सजाया था मै अब तक.

जान गया हूँ तेरी विवशता,
नहीं तुझे मजबूर करूंगा
बोलो चाहती हो क्या मुझसे?
आजीवन तुझसे दूर रहूँगा.

एक थी बस अभिलाषा मेरी,
एक मात्र वह आशा मेरी..,
एक यही अरमान था मेरा,
अग्नि मुझे दे बेटा तेरा...

नहीं तुझे बदनाम करूंगा,
होठों से अब नाम न लूंगा,
दिल की बात नहीं करता मै,
तेरी इच्छा का मै मान रखूंगा,

सच मानो मै 'जाम' न लूँगा..
अश्कों को भी समझाऊंगा
अभिलाषा का 'दान' करूंगा,
नहीं कभी अब आह भरूंगा,
.
इच्छाओं का अब मोल है क्या?
वेदना है ! कोई ढोल है क्या?
वेदनाओं का 'हार' चढ़ाता हूँ !,
करता हूँ अर्पित तुम्हे अश्रु जल !.

प्राणों का धूप जलाता हूँ मै,
तन का दिया दिखाता हूँ मैं.
मै तेरी 'सुख-धाम' की खातिर,
अपना सर्वस्व लुटाता हूँ मै .
खुद को एक बुत बनाता हूँ मै ...

पर तोड़ नहीं पाउँगा उसको..,
जिसको पूजा था मै अब तक.
बहा दिया सब संचित सपना,
जिसे सजाया था मै अब तक.
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