आसमान में 
उड़ने की ललक
परिंदों सा व्योम में 
छा जाने की अन्यतम 
जिजीविषा उत्साह 
और उन्मुक्त साहस
दिखाया तो बहुतों ने.
परन्तु
कौन उड़ सका है 
खुले आसमान में, 
बिना पंख के?
और आज का पंख
आपकी अपनी 
असीम अर्जित 
पवित्र योग्यता 
और कौशल नहीं,
इन भू-सुरों का 
कृपा पात्र होना है.
बिना इस कृपा 
के उड़ना तो दूर.
धरती पर भी नहीं
दौड़ सकते आप?
नहीं लगा सकते
इच्छित कल्पित
उन्मुक्त कुलांच.
बिछा दी जाएँगी
राहों में दाने
क़ाली- पीली सरसों के,
और कहा जाएगा -
गर्व मिश्रित स्नेह से.
हम तो उतार रहें हैं 
नज़र, अपने प्यारे 
सलोने लाडले का.
देश के होनहार सपूत, 
राष्ट्र के उज्ज्वल और 
स्वर्णिम भविष्य का.
