Friday, September 24, 2010

अक्षर से है सृष्टि विकास

कविता
और गीत
तो अन्यतम
साधना है -
शब्दों का.

और शब्द?
शब्द तो
आराधना है -
अक्षरों का.

इन अक्षरों
और शब्दों के
युग्म ने ही रचा है -
साहित्य, सदग्रंथ
और सृष्टि ग्रन्थ .

ये अक्षर ही हैं
जिन्हें हम कहते हैं
- "पञ्च महाभूत"

'अ' से अग्नि,
आ' से आकाश
'ग' से गगन,
ज' से जल
'स' से समीर,
'प' से प्रकाश

क्या इन्ही से
नहीं हुआ है
इस सृष्टि
का विकास

रचा सृष्टि ने
मानव को
मानव की अपनी
अलग सृष्टि है.

अपनी - अपनी
व्याख्या है अब
परख - परख
की अपनी दृष्टि.

धर्म नहीं बदनाम करेंगे

आज पितृपक्ष का पहला दिन है. यह कोई त्यौहार नहीं एक उपहार है. हम अपने लिए तो जन्मदिन से विवाह दिन.....न जाने और क्या- क्या मानते है आज अपने अग्रज, अपने पूर्वजों को तो याद कर लिया जाय जिन्होंने इतनो अच्छी विरासत...संस्कृति, संस्कार और विज्ञानं.. प्रदान किया हमारी सुख शांति और ऐश -ओ-आराम के लिए. पर सच बोलिए हम हों या आप कितना याद करते हैं उन्हें........? आज से प्रारंभ हुआ पितृपक्ष उन्ही के लिए है.... इस व्यवस्था को जिसने भी बनाया हो, लागू किया हो, बड़ा उपकार किया मानव समाज पर. पूर्वजो को सबसे उत्तम श्रद्धांजलि तो यह होगी की हम पुत्र - पुत्र - प्रपौत्र...के रूप में ऐसा कोई काम न करें जिससे उनके नाम के साथ हमारा नाम जोड़कर बदनाम किया जाय. यह संकल्प आज बहुत ही महत्वपूर्ण होगा. श्रद्धांजलि देंगे हम उनको और लाभ होगा हमारा. विकास होगा हमारा, प्रगति और उन्नयन होगा हमारा. तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.............आइये याद करते हैं अपने प्रथम पूर्वज को ...... जिन्हें हम ईश्वर भगवान्...खुदा ...जो भी नाम दे..

आखिर इस सच्चाई को
हम समझ क्यों नहीं पाते ?
धर्म - कर्म - कला - संगीत
गीता - पुराण - कुरान.
दर्शन -चिंतन -ज्ञान - विज्ञानं
सभी में ज्ञान प्रभु का है.


नज्म - ग़ज़ल -अफसाना
गीत - भजन - कव्वाली
तर्ज अलग है राग अलग
पर भाव सभी में प्रभु का है.


कैसा - कैसा नाम दिया है
हमने प्रभु तुमको बाँट दिया है.
कैसे हैं नादान मूर्ख हम
तुमको भी यह संताप दिया है.


मगर आज जब बैठ गए हैं
करने चर्चा मेरे मालिक !
अबकी सद्ज्ञान हमें दे दो
कितनों को तो हर बार दिया है.


हम अपना उत्कर्ष करेंगे
चिंतन और विमर्श करेंगे
अब तक चाहे जितना खोया
अब से हम उत्थान करेंगे
धर्म नहीं बदनाम करेंगे
हाँ धर्म नहीं बदनाम करेंगे.