Thursday, October 21, 2010

संवाद: गंगा और यमुना का

गंगा - यमुना दो बहने हैं
उदगम दोनों का हिमालय है,
गंगा की जन्मस्थली -'गोमुख'
यमुना की वहीं -'यमुनोत्री' है.

दोनों ही बहती प्यार लिए
स्नेहिल वेगमय धार लिए,
दोनों का पथ है अलग -अलग
संगम पर एकदिन जा के मिले.

थी मिलने की खुशियाँ भी बहुत
पर रंजोगम कुछ कम भी न था,
जब कुशल क्षेम की बात चली
मन का भांडा फिर फूट पड़ा.

बोली यमुना यूँ गंगा से -
मुझमे तुझमे यह भेद है क्यों?
सांवली हूँ मै तू गोरी है...,
इस रंग पर इतनी गर्विता क्यों?

माना तू प्रिय है -भोले को ,
उच्श्रृंखला हो मस्तक जा बैठी
कुछ शर्म करो उस भगिनी का,
क्यों हक उसका तुम छिन बैठी?

हक मेरा छिनना चाहती हो
क्यों इतना मुझे सताती हो?
क्या रंग - रूप ही है सब कुछ,
इतना जो तुम इतराती हो.

यह मानव जाती पूजती तुमको,
मै पड़ी - पड़ी ललचाती हूँ.
क्या तुझमे अधिक है मुझसे?
आज तुमसे ही सुनना चाहती हूँ.

बोली गंगा - सुनो बहना मेरी!
है भ्रम तेरा यह ईर्ष्या है तेरी.
थी बसती मै 'हरि चरणों में',
अनुरक्ति मेरी 'हरि चरणों में'.

उन चरणों का ही प्रसाद मिला,
मुझे तारने का अधिकार मिला.
जिसको हो समझती उच्श्रृंखलता
वह गर्व नहीं है - समर्पण है'..

समर्पित का स्थान है - 'दो ही',
एक दिल है और एक मस्तक है.
दिल में रहती मेरी भगिनी है,
मुझे मिला स्थान जो, 'मस्तक' है.

था अधिकार यह भोले को,
चाहे जैसा व्यवहार करें.
मै तो हूँ - 'शिष्या' उनकी,
मत करो संदेह पवित्रता पर.
निज मन की यह विकृति तेरी,
कुछ शर्म करो! कुछ शर्म करो! !

पूछा तुमने जब अंतर है,
उसको अब तुम्हे बताती हूँ,
जिस 'हर' की हूँ दासी मै.
तू उसकी गेंद चुराती है.

शरण स्थली बनी रही हो,
ताज दिया तूने मर्यादा है.
पहले था संरक्षण कालिया को,
अब संरक्षण विधि छलिया को.

सीख मान लो बहना मेरी!
संकल्प सहित यह यह कहती हूँ.
है साक्षी इसकी सरस्वती यहाँ,
चलो सभे संग अब बहती हूँ.

मुझमे तुझमे कुछ भेद नहीं,
जो गंगा है वह यमुना है.
मिटा राग - ईर्ष्या जब से
नाम -रूप रंजोगम खो गाया,

मन का सब मालिनी धुल गया.
अब तो सब गंगा ही गंगा.
मिला संयुक्त अधिकार जब तारने का
निज नाम भूल गयी यमुना अब,
लगी कहने निज को भी गंगा-गंगा अब.

सभी के मन में बसती हैं ये,
गंगा - यमुना जो नदियाँ हैं.
अब तेरे ऊपर है मेरे भाई!
कौन बहती तेरी 'अखियाँ हैं'.