Tuesday, August 3, 2010

स्वतंत्रता की मशाल: गणितज्ञ बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक, भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष काल का ऐसा नाम जिसने स्वतंत्रता की चिंगारी को दहकता शोला बना दिया. एक ऐसा आध्यात्मिक व्यक्तित्व जिसने 'गीता' की एक नई व्याख्या की, शिथिल पड़े समाज को 'कर्मयोग' का पाठ पढाया. सोते हुओं को जगाया, उनकी निद्रा तोड़ी; तन्द्रा मरोड़ी और कर दिया गतिमान कर्त्तव्य पथ पर. ऐसे ऊर्जस्वी व्यक्तित्व के धनि थे - बाल गंगाधर तिलक; जिन्होंने अपने नाम में जुड़े प्रत्येक शब्द को, अक्षर विन्यास को सार्थक किया. उन शब्दों को एक नया अर्थ दिया, नई व्याख्या दी. वे शब्द अपनी व्याख्या सुनकर खिल उठे. लगता है शब्द और अर्थ मिलकर उनके व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं कुछ इस प्रकार से - 'वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये' के रूप में. वह नाम जिसके उच्चारण मात्र से स्वतान्तान्त्र्ता का जोश सिद्धांत रूप से छलक पड़ता है _ "स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे".

डॉ. राधाकृष्णन लिखते हैं - "युवकों के लिए तिलक के नाम का अर्थ था- ज्वलंत वेग, भक्ति, अद्वितीय साहस, देश की अवातान्त्र्ता के लिए दृढ संकल्प और समर्पण". आज जब हम तिलक जी के बारे में सोचते हैं, डॉ. राधाकृष्णन के प्रत्येक शब्द को उनके नाम के अर्थ में समाहित पाते हैं.हम उनके नाम की व्याख्या इस प्रकार भी कर सकते हैं -

बाल = हनुमान जैसा बाल रूप जिसने अंग्रेजी राज्य के सूर्य को निगल लिया.

गंगाधर = गंगा को धारण करने वाले शिव का रूद्र रूप जिनके तीसरे नेत्र से स्वतंत्रता की ऐसी ज्वाला फूटी जिसमे अंग्रेजी सरकार भस्म हो गयी.

तिलक = उस स्वतंत्रता की भस्म को हम चन्दन/रोली मान कर हम गर्व से माथे पर धारण कर रहें हैं.

यह है उनके नाम में जुड़े शब्दों का प्रभाव जिन्होंने तिलक के व्यक्त्तित्व को अद्भुत-अलौकिक बना दिया. डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार - "तिलक ने बार-बार कहा था, 'स्वतंत्रता हमारी भावी समृद्धि की नीव है, छोटी नहीं. हमें एक नए राष्ट्र का निर्माण करना होगा".अपने उसी लेख में डॉ. राधाकृष्णन आगे लिखते हैं - "आम हालत में तिलक ने एक विद्वान का जीवन जिया होता तो पूर्व देशीय अध्ययन तथा गणित के क्षेत्र में उनका विशिष्ट योगदान होता. लेकिन एक पराधीन राष्ट्र के सदस्य होने के नाते उनके लिए राजनीति में भाग लेने के अलावा कोई चारा नहीं था. जब उनसे पूछा गया कि 'स्वराज्य मिलने पर आप कौन विभाग संभालना पसंद करेंगे? आप प्रधान मंत्री बनेंगे या विदेश मंत्री?' उन्होंने जो जवाब दिया था, उससे उनके मन का पता चलता है: 'स्वराज्य मिलने पर मैं राजनीति से छुट्टी लेकर गणित का प्रोफ़ेसर बन जाऊंगा. मुझे राजनीति से सख्त घृणा है. मैं अब भी सापेक्ष विगणन पर पुस्तक लिखना चाहता हूँ." आज सोचता हूँ, तिलक जी यदि जीवित होते और सचमुच गणित शास्त्र के प्रोफेसर हो गए होए होते तो गणित को कैसे पढाते? बच्चों को कैसे समझाते? शायद इस रूप में -

( कक्षा में प्रथम दिन ....परस्पर ..अभिवादन .., संक्षिप्त परिचय ...के बाद.....बच्चों सीट पर बैठ जाओ)


प्यारे बच्चों!
गणित के शिक्षार्थियों के लिए
अनिवार्य है कि वे गणित के
इतिहास को कदापि न भूलें.
हमने राजनीति में इसी इतिहास
को भुला दिया, फलतः देश का
भूगोल बदल गया है आज.
गणित डरने की नहीं डूबने की चीज है,
गणित को समझने का
सबसे सरल उपाय एक ही है -
'उसमे पूरी तरह डूब जाना.....' .
गणित और अध्यात्म दोनों की शर्त है -
"जिन ढूंढा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ".
तो आओ प्रारंभ करते है जानने की प्रक्रिया,


गणित क्या है? संख्याओं का खेल? अंकों का मेल?
क्रमिक और क्रम बद्ध विन्यास? या और कुछ?
गणित, जिसे बाँधा नहीं जा सकता - संख्याओं में,
आकृतियों में, संबंधों में.यद्यपि इसी में बाँधने का,
संबंधों में साधने का प्रयास हुआ है अब तक.
और यदि स्वयं संख्या, अंक और सम्बन्ध का
मान स्थिर नहीं, तो क्या इसकी माप
विस्वसनीय होनी चाहिए? यदि हाँ तो कितनी?


हमने अक्षरों को छोड़ा, शब्दों को छोड़ा,
चित्रों को छोड़ा, यह आरोपित करके कि
इसके मूल्य अर्थ बद्ध हैं. निहितार्थक
संकेतार्थक हैं,
और भावार्थक हैं.
हम शब्दों को पहचानते हैं -
उसके अर्थ द्वारा. भावार्थ द्वारा,
अक्षर विन्यास द्वारा.और अर्थ क्या है?
एक भावात्मक मूल्य.........,
कुछ निश्चित सा, कुछ अनिश्चित सा;
जिसकी व्यापकता है - शून्य से अनंत तक.
फिर भी कोई संख्यात्मक मान नहीं.
गणितीय मूल्य नहीं. निर्धारण हो तो कैसे?


गणित तो स्वयं उलझा है - संबंधों को लेकर.
उदाहरण के लिए 'पाई' का मान क्या है?
क्या पाई संख्या है? या सम्बन्ध है,
त्रिज्या और परिधि का? परन्तु स्वयं
वृत्त क्या है? व्यास क्या है? जीवा क्या है?
वृत्त जो शून्य भी है और अनंत भी.
वृत्त जो अनंत भावों का, मूल्यों का शून्य है,
और वृत्त जो अभावों का अनंत है.
शून्य और अनंत , गणित के दो छोर;
दोनों ही अकथ्य, अनिर्वचनीय, अव्याख्येय.

वृत्त भाव और अभाव के बीच की वस्तु है शायद,
जो नाम - रूप में आकार ग्रहण करती है.
वह कभी त्रिभुज - चतुर्भुज - वर्ग - आयत,
परिभाषा के अनुरूप, तो कभी गणितीय
परिभाषा के विपरीत उसकी अवाधारनाओं को
चुनौती देते हुए, कुछ जिग-जैग सी.


गणित जो दुलारा है - साहित्य और दर्शन का.
प्यारा है - विज्ञानं का, जान है - व्यापार का.
मान है - इंसान का, मूल्य है - पदार्थ का.
भाव है - सम्बन्ध का, आश्रय है - सत्ता का.
वरदान है - शासन का, शान है -वाणिज्य का.
और लोकतंत्र में कुंजी है - आसन का.


गणित जिसमे उलझा है देश का प्रत्येक नागरिक,
रक्षक से भक्षक और सैनिक से आतंकवादी तक.
खाड़ी से खाकी तक और काले कोट से टाई तक.
और जिसने सबसे ज्यादा उलझा रखा है -
राजनेताओं को. निन्यानबे का चक्कर
तो फिर भी थोडा है, सत्ता कि गणित के लिए,
बड़े-बड़े सिद्धान्तवादियों ने पार्टी तोडा है.
फिर भी डर है- यह गणित का खेल है;
पाता नहीं यहाँ कौन कब पास और कब फ़ैल है?


इसका दूसरा रूप संसद - विधान भवन और
आस्था के मंदिर में है, जहाँ गणित के कारण ही
कोई बहार तो कोई अन्दर में है.
गणित की महिमा न्यारी है, हर विद्या इनसे हारी है
दर्शन- जो सभी विद्याओं की जननी है, उसे;
डेकार्ट, स्पिनोजा, लाय्ब्नित्ज़ के माध्यम से ,
नया रूप देने में गणित ने बाजी मारी है.
अनुसुइया की गणित ने ब्रह्माणी, रुद्राणी को भी
नाको चने चबवाय था, जब सतीत्व के बल से
त्रिदेवों को दूध पीता बालक बनाया था.


गणित वह रहस्यमय ताज है -
जो आर्कमेडिज़ को वैज्ञानिक, भरत को त्याग-मूर्ति
और दुर्योधन जैसों को सत्ता का लोभी बनाता है.
केशव के शयन कक्ष में- एक अकेला को पाकर,
अर्जुन बाजी जीत गया और दुर्योधन उसी कक्ष में,
कई अक्षौहिणी सेना पाकर भी बाजी हार गया.
तब भी गणित का खेल था, आज भी गणित का खेल है.
गणित अंतरात्मा की आवाज है जो स्वप्न में आता है,
संसद में हाथ उसी के पक्ष में उठता, जो ताज दिलाता है.
हे गणित! जो मान - सम्मान तुझे रामानुजम और
भाष्कराचार्य जैसे विद्वान भी न दिला पाए,
वह इन सत्ता के दलालों ने दिलाया है.


गणित तू क्या है? किस मिट्टी की बनी है?
सदियों बाद तू आज समझ में आई है -
वृत्त सत्ता है, व्यास प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री की कुर्सी है,
तथा जीवा मंत्रिमंडल है, उसका आकार - प्रकार है,
जनता केंद्र बिंदु है, जिसे चूसकर हर त्रिज्या
अपना गणितीय मान बढ़ा, व्यास बन जाना चाहती है.

नोबल प्राइज़ विजेता सार्त्र की परिभाषा आदमी की अपेक्षा
गणित पर सटीक बैठती है, - " गणित वह है जो वह नहीं है,
और जो वह नहीं है, वही वह है", यही गणित है,
गणित का खेल है, सचमुच यह गणित का ही खेल है.