आशा  है  अलख जगा रही
अब  आगे   बढ़ते  जाना है.
किया है जो मन में संकल्प
अब  लक्ष्य  उसे ही पाना है.
तिमिर की औकात कितनी?
परिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
वह जानती इस बात को भी
यहाँ अब है नहीं मेरा गुजारा.
यहाँ   उषा  की   लालिमा
नभ के पटल जब छाएगी,
हो तिमिर या तम घनेरा
नजर क्या फिर आएगी?
यह जीवन महासंग्राम है
इसमें  कहाँ  विश्राम  है?
फिर श्रृंग हो, या गर्त हो;
नाप  लेंगे  हम  ये  दूरी,
गगन का अवकाश हो, 
अन्दर मही की पर्त हो.
रोक  क्या  पायेंगे  हमको,
छल - कपट की ये बाधाएं.
दूर   तक  जाना  है हमको
पार करके ये अवरोध  सारे.
तिमिर की औकात कितनी?
परिव्याप्त हो चाहे ये जितनी.
दूर  तक  जाना  है  हमको
पार  करके ये अवरोध सारे.
