Monday, March 21, 2011

प्रकृति का रोष या मानव का दोष




कैसा आया यह भयंकर भूकंप
भीषण लाया कहर निज संग.
देखो! ये लाया संग है सुनामी,
जन-जीवन की कठिन कहानी.

मृदुल प्रकृति क्यों हुई कुपित?
सोचो पुनः क्यों हो तुम चकित?
क्या यह क्रोध प्रकृति का केवल?
या करनी इसमें कुछ अपनी भी?

पीछे इसके छेड़-छाड़ है विज्ञान की?
क्या अवहेलना नियम साहचर्य की?
आवश्यक सामंजस्य व संतुलन की?
क्या रह गयी कमी अंतर्मिलन की?

करना होगा गहन विचार हमें,
यदि भविष्य सुरक्षित रखना है?
क्या जाने आगे फिर कैसा ...?
दुर्दिन हमको और देखना है?

हमें क्यों लगता है ऐसा.?
अति- वृष्टि और अनावृष्टि,
यह सुनामी और भूकंप,
यह प्रकृति का दोष नहीं.

अति भौतिकता की दौड़ में,
उपेक्षित प्रकृति का रोष है.
प्रकृति नहीं है केवल जड़,
चेतना तक है उसकी जड़.

गर है इसमें कुछ भी सच्चाई,
होगी यह एक  बड़ी अच्छाई.
सब छोड़ के पीछे हम अब..,
करें पड़ताल, जाने सच्चाई..

अच्छी बात, करें उपयोग अणु का
आणविक-परमाणविक ऊर्जा का.
पर रखे ध्यान सुरक्षित प्रकृति का
पहला दायित्व तो यह है अपना,

करें सुरक्षित मानव को, मानवता को
दूजा यह कि रखें संतुलित प्रकृति को.
अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति को.
अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति को.