Monday, February 16, 2015

ओ काल ! ओ समय !

कल महाशिवरात्रि है, महाकाल के हर्ष का दिन सोचा क्यों न उनसे hi कुछ बात की जाय? बस वार्ता प्रारम्भ हो गयी। कैसी लगी वार्ता अवगत कराइएगा -
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ओ काल ! ओ समय !
अरे ओ निष्ठुर समय !!
ओ परिवर्तनशील समय !!!
तुम सबकुछ बदल देते हो
कभी कुछ छोड़ते नहीं
किसी को भी तो नहीं छोड़ते
'कालोस्मि' के हुंकारी को भी तो
कितना निरा असहाय बना दिया
जिसने ली थी कभी अग्निपरीक्षा
उसे भी जल समाधि दिखा दिया
महायोगी को तो अपने ही कंधे पर
माया को कंधे पर लादे हुए
जंगल-जंगल तक दौड़ा दिया
और इस तत्वज्ञानी को भी
कितना तूने बावला बना दिया,
यह है तुम्हारा प्रभाव, प्रबल प्रताप।
माना परिवर्तन ही है
तुम्हारा नियम फिर भी
करते हैं विनम्र एक निवेदन
यदि सम्भव हो तो मान लो
अपने नियम को थोड़ा खंगाल लो
कुछ चीजें छोड़ दो न अपरिवर्तित
वैसा ही, जैसा था बचपन में
वह भोला - भाला सा प्यार, मनुहार
सभी का स्नेह, अनुराग, आशीर्वाद
इन भावनाओं को बचा लो न !
रहेंगे जन्म-जन्मान्तर तक आभारी
तू कुछ बन जा सरस, सरल, मधुर
तुझ सर्व समर्थको क्या लाचारी?
ओ समय !
ओ निष्ठुर समय !!
ओ परिवर्तनशील समय !!!
डॉ जयप्रकाश तिवारी