Friday, June 12, 2015

आधुनिक नारी : सोच और नियति

पता नहीं क्यों
आज की नारी गमले मे
खिलना नहीं चाहती,
वह उपवन मे भी
पलना नहीं चाहती
उसे स्वीकार नहीं
माली का हस्तक्षेप
सार्थकता जताती वह
उन्मुक्त खिलने मे
मन पसंद स्वच्छंद
जीवन जीने मे ।

बुके मे
सजाये जाने पर
आज उसे आपत्ति नहीं
गजरा, माला बनने से
कोई परहेज नहीं
लेकिन गमले से
आपत्ति है उसे अब भी
चाहती है स्वतंत्र खिलना,
उन्मुक्त जीना ।
सुरभि–सुगंधि विखेरना ॥

लेकिन
यह असंरक्षित सौंदर्य ही
उसका शत्रु बन जाता
माली के अभाव मे
अब जो भी चाहता,
... उसे तोड़ ले जाता
खिली हो या अधखिली,
पत्ती हो या कच्ची कली
उसको भी निचोड़ लेता ॥

फिर वह
सजती और सजाई जाती
नासिका–कर्ण विदीर्ण कर
अब वह रोती और चिल्लाती,
जहां कोई नहीं है सुनने वाला
उसकी चित्कार, करूण पुकार।

और ...
हाय रे नियति
यह बुके आज
भेट की जानी है उसे
माला पहनाई जानी है उसे
जो है उसकी प्यारी सखी
सुमन का गुनहगार
कुसुम का हत्यारा
पुष्पा का बलात्कारी ।

जिसके विरुद्ध 
न्याय के लिए लगाया था 
उसने कितना बुलंद नारा
जोरदार नारा, जुलूस निकाल कर
मशाल जलाकर, मुट्ठी बांध कर,
हाथों को हवा मे लहराकर ॥

डॉ जयप्रकाश तिवारी