Wednesday, January 28, 2015

मैं शलभ हूँ

एक शलभ हूँ मैं
रंगीन तितलियाँ 
मन बहलाती हैं 
प्यार में जीना 
मरना सिखाती हैं 
श्वेत तितलियाँ 
पवित्रता लती हैं 
कर्तव्य-बोध कराती 
पथ सुदृढ़ बनाती हैं 
तब मुस्काता हूँ मैं 
जब आरोप लगता है 
दीप बुझाने आया है 
हक़ जताने आया है 
उन्हें मैं क्या समझाऊं 
उन्हें मैं क्या बताऊँ 
प्राण तक तो दे दिया 
अब कौन साप्रमाण लाऊँ ?

डॉ जयप्रकाश तिवारी