Monday, April 30, 2012

गीतामृत अर्जुन को ही क्यों?




युद्धिष्ठिर तो धर्म धुरंधर थे
गदाधर भीम थे बलशाली,
पर गीताज्ञान अर्जुन को क्यों
पूछे यह प्रश्न मन का माली.

ज्ञान उसी को मिलता है
जो होता है, उसका अधिकारी,
उसको भी सहज ही मिल जाता
जो 'वरण' यथेष्ट को करता है.

कन्या करती वरण है वर को
करता है शिष्य गुरु को वरण,
वारनेय अपना धर्म निभाता
देता है उसको उर में शरण.

योगी पाते जिसे कठिन योग से
तपसी जिसे कठिन तपस्या से,
पाता जिसे पुरुषार्थी कर्मयोग से
शरणागत पाता उसे वरेण्यं से.

अर्जुन ने मान श्रुति का निर्देश
किया था वरण, सखा कृष्ण को
ठुकराके धनबल जनबल सैन्यबल 
वारनेय धर्म ही हुआ प्रस्फुटित 
रणक्षेत्र मध्य वहाँ, कुरुक्षेत्र के.