Monday, July 25, 2016

दर्द की भाषा-परिभाषा (3)


कुछ पाकर दर्द
विखर जाते हैं
कुछ पाकर दर्द 
संवर जाते हैं
संभावना दर्द की
है असीम अपार .
हाँ, इस दर्द के
विभिन्न रंग है
बिना कोई दर्द
जीवन बदरंग है
दर्द चिमटा है
दर्द कुर्सी है
दर्द घुघरू है
दर्द पायल है
इसी के पीछे
दुनिया घायल है .
दर्द यह
बुनता है जाल
करता आक्रमण
अधिकार बनकर
कर्त्तव्य बनकर
प्यार बनकर
क्रोध बनकर
हंसी बनकर
ग्लानि बनकर
योगी बनकर
सन्यासी बनकर
कभी काबा और
कभी काशी बनकर ..
(क्रमशः जारी)
डॉ जयप्रकाशतिवारी