Wednesday, September 8, 2010

कब आएगा श्वेत सवेरा.

कहते - पूछते तकते नहीं थे
'देखो छाया तिमिर धनेरा
कब आएगा, कब आएगा?
प्रातः उजला - श्वेत सवेरा.

कहा जो उनसे चौक गए वे
चलते - चलते अटक गए वे.
'देख रहे अंधेर का पत जो'
वह मन का घोर कपट है.

मन के इस कपट को
धूर्तता को, छल को
यदि गगन से हमें हटाना है,
लो मिट्टी और करो संकल्प:
अब इसको हमें जलाना है.

छलिया है भागेगा नहीं यह
रूप बदलकर आएगा
बन्दर सा नाच दिखायेगा
फिर से हमें फँसाएगा.

करना है यदि इसे नियंत्रित
ले डमरू और छड़ी हाथ में
नट हमको बन जाना है
अनूठा खेल दिखाना है.

मन ने बहुत नचाया हमको
अब मन को हमी नचाएंगे.
देखो आता मजा है कितना,
जब बंदरिया इसे ही बनायेंगे.