Tuesday, July 7, 2015

ऐसे चिंतकों को धिक्कार है

चिंतक- समीक्षक - कवि
न तो होता सुविधा भोगी
न ही होता वह वेतन भोगी,
होते हैं जो सुविधा भोगी
हो जाते हैं शिकार वे
बुरी तरह,  उसी सुविधा के ।
फिर कब हो जाती है कुंठित
उनकी कलाम की तीव्र धार,
कब बन जाती कविता व्यापार
नहीं जान पाते, वे स्वयं भी।
जानती है यह, उनकी सुविधा॥

चिंतक और समीक्षक तो
इस जगत का यार है
स्रष्टा -सृष्टि से ही उसे प्यार है
सिद्धन- सूत्र ही उसका शृंगार है
परिदान- अवदान - सुविधा
ये बातें तो नीरा व्यापार है,
और चिंतक, समीक्षक, कवि को
व्यापार से नहीं, दायित्व से प्यार है।
चिंतक की विद्वता, प्रतिभा
तो 'माँ सरस्वती' की देन  है
लेखनी - तूलिका मे सामर्थ्य
तो ;माँ सुरगे' की देन है, लेकिन
बिक जाना उसका सुविधा के हाथों
मित्रों ! बताओ यह किसकी देन है?
यह तो चिंतन का निरा अपमान है
ऐसे चिंतकों को धिक्कार है ॥

डॉ जयप्रकाश तिवारी