Tuesday, May 22, 2012

न इतना गम मनाओ तुम!



एक करारी हार पर

न इतना गम मनाओ तुम!

वीर हो, तुम धीर हो

पग दूसरा फिर बढाओ तुम.

त्याग दो इस हार पर

मन में जो भी हो हताशा,

आत्म चिंतन की घडी में

आज कैसी यह निराशा?



इस हार को ठोकर बना लो

दो कदम आगे बढोगे,

मान बैठे फिसलन इसे यदि

कदम चार नीचे गिरोगे.

करती भ्रमित काली जो

बदली, राह में अंधेर बनकर.

लेती हर सारी व्यथा को

ठंडीबूँद की बौछार बन कर.

जीत हो या हार हो

बस दो कदम का फासला है

हार पड़ जाती गले में

पास जिसके हौसला है.