Saturday, July 9, 2011

आखिर ब्लोगर है क्या: एक चिंतन (भाग-1)

आखिर एक ब्लोगर है क्या?
एक चिन्तक, एक रचनाकार?
एक रिपोर्टर या एक लेखक?
एक कवि, अथवा समालोचक?
अथवा सब कुछ एक ही साथ?

खींचता है जो अपनी रचनाओं में
दृश्य - परिदृश्य, अपनी अनुभूति.
उन संवेदनाओं, प्रतिक्रियाओं की,
जो एकल हो या सर्व समाज की;
और देता है उसे एक सार्थक स्वर.
एक आकार, प्रकार, प्रतिकार.

वह जन चेतना की आवाज है या
नितांत अपने मन के पञ्चकोशों तक
सीमित रहनेवाला 'कन्दरानुरागी'.
एकांतवासी और अरण्य निवासी,
जो निकालता है नेट पर अपनी भड़ास.

अथवा जो बांटता है सर्व समाज से
जनता-जनार्दन से, तत्कालीन ही नहीं,
समकालीन, पुरातन, और नवीनतम
हलचलों की वर्तुलों का सार्थक स्वर है?
यह सहमति है, आलोचना है या विरोध?

अथवा है वह
कुछ सक्षम लोगों का एक चारण?
एक दूत? सुविधा भोगी और वेतन भोगी?
सत्यता को छिपा छद्मवेशी एक अग्रदूत?
आखिर ऐसा कौन सा क्षेत्र है, विधा है,
कौन सी सत्ता है, लौकिक या पारलौकिक?
जहाँ ब्लोगर का हस्तक्षेप नहीं............?

मूल्यों की दृष्टि से, विविधता की दृष्टि से,
इतना तो स्वीकार करना ही पडेगा कि
क्या काबुल में गधे नही होते? लेकिन,
इससे घोड़े का मूल्य कम तो नहीं हो जाता.
ऐसा नहीं कि पुरातन में उर्वरता -उपयोगिता नहीं.
वैसे ही सभी आधुनिक भी सदुपयोगी नहीं...
ब्लोगर निकालता है उससे - 'पराग' और नवनीत'.
रचता है वह - गद्य, पद्य, नाटक ...और ..नवगीत.

अंततः फिर वही प्रश्न, एक ब्लोगर है क्या.?
उत्तर में छोटा सा प्रतिप्रश्न पूछना चाहता हूँ -
जब समाज का सभी वर्ग जुटा होता है -
रोजी-रोटी कमाने में, निन्यानबे के फेर में,
ब्लोगर नेट पर आँखे क्यों गडाए रहता है?
ढूंढ - ढूंढ कर नई पोस्ट क्यों पढता है?
अपनी टिप्पणी उस पर क्यों छोड़ताहै?