Thursday, October 20, 2011

दीपक तेरे रूप अनेक


दीपक, 
तन ही नहीं जलाता, 
वह मन भी है जलाता.
धूम-धूम जलता दीपक, 
नहीं किसी को भाता.

जब तक 
शोणित की हर बूँद 
न निकल जाय.
जब तक तेल की 
हर बूँद न जल जाय.
दीपक, हार नहीं मानता, 
तो फिर नहीं मनाता.

दीपक का ताप ही,
सागर में बडवानल है.
दीपक का ताप ही,
काया में जठराग्नि है.

दीपक का 
ताप ही धरा को 
फोड़कर बाहर आता.
यही कभी सुप्त, 
और कभी धधकता
ज्वालामुखी कहलाता.

प्यारे !
केवल दीपक का 
यह लौ मत देखो,
लौ का रूप देखो,
बदलता स्वरुप देखो.

आज 
रामलीला मैदान में,
राम के तीर और
रावण के सिर में
उसी की आग है.

दीपक को
प्यार दो! भरपूर दुलार दो!!
उसे कौतुहल मत बनाओ.
दीपक तो स्वयं जल रहा, 
उसे तुम और न जलाओ.

दीपक
जब तक है मर्यादित,
घर की धवल चिराग है.
जब तोड़ दिया मर्यादा,
वह जंगल की आग है.


11 comments:

  1. दीपक के इस रूप की व्याख्या बहुत सारगर्भित

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  2. बहुत-बहुत बधाई ||
    खूबसूरत ||

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  3. दीपक
    जब तक है मर्यादित,
    घर की धवल चिराग है.
    जब तोड़ दिया मर्यादा,
    वह जंगल की आग है.

    ...बहुत ही सटीक और सारगर्भित...

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  4. सभी विचारकों का बहुत - बहुत आभार. टिप्पणियों का स्वागत.

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  5. दीपक के रूप को विवेचित करती सुन्दर रचना!

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  6. Anupama apathak,

    Thanks for kind comments.

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  7. बहुत सुंदर और सटीक व्याख्या दीपक के विभिन्न रूपों की...आभार!

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  8. दीपक के विविध रंग मनभावन हैं। बधाई,

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  9. दीपावली की शुभकामनाएं,

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  10. दीपक और उसकी लो को शब्द दिए हैं आपने ... बहुत उम्दा प्रस्तुति ..

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  11. सभी विचारकों का बहुत - बहुत आभार. टिप्पणियों का स्वागत.

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