Tuesday, September 28, 2010

हिंदी समर्थ अपनी है भाषा

हम हिंदी पखवाड़ा मानते क्यों?
उसे धूप - दीप दिखलाते क्यों?
क्या हिंदी भी है मृत एक भाषा?
ऐसा भोंडा ढोंग दिखलाते क्यों?

यदि हिंदी से है गहरा नाता फिर
कार्यालयों को यह क्यों नहीं भाता?
अधिकारी नेतागण जो जिम्मेदार
उन्हें प्रेम बस इंग्लिश से .
हिंदी से कैसा ..नाता.....?

हिंदी की बात जो करते हैं
वे झूठी शान क्यों गढ़ते हैं?
कसमे खाते जो हिंदी की
औलाद कान्वेंट में पढ़ते हैं.

जो अक्षत - पुष्प चढाते हैं
हिंदी से स्नेह दिखलाते हैं
स्नेह यदि सच्चा है तो आओ
हिंदी में ही बात... करे...

एक नई नई शुरुआत करे
हिंदी में पत्र व्यवहार करें
हिंदी साहित्य से प्यार करें.
मानस का नित पाठ करें.

हिंदी समर्थ अपनी है भाषा
जाने फिर भी क्यों है निराशा
लिखे शोध हिंदी भाषा में
विपुल शब्द भण्डार है इसमें.

6 comments:

  1. वाह तिवारी जी , मज़ा आ गया . एकदम सही सन्देश है हिंदी के झूटे तरफदारो के लिए .

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  2. Ashish ji

    Thanks for visit and moral support.

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  3. Madhav ji

    Thanks for visit and moral support.

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  4. बहुत ही सुन्दर और हिंदी के प्रयोग को प्रेरित करने वाली सशक्त रचना .....

    यदि हिंदी से है गहरा नाता फिर
    कार्यालयों को यह क्यों नहीं भाता?
    अधिकारी नेतागण जो जिम्मेदार
    उन्हें प्रेम बस इंग्लिश से .
    हिंदी से कैसा ..नाता.....?
    इन पंक्तियों के बारे में बस इतना कहना चाहूँगा की कार्यालयों में जिस हिंदी का प्रयोग होता है उसको समझना और लिखना हिंदीभाषियों के लिए भी मुश्किल होता है. हिंदी को अगर कार्यालयों की भाषा बनना है तो उसे सरल और जनता की भाषा को अपनाना होगा और अपने को दुरूह शब्दों से दूर रखना होगा.अभिव्यक्ति की सरलता ही इसे कार्यालयों में लोकप्रिय बना सकती है.....आभार ....

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  5. आदरणीय शर्मा जी
    आपके सुझाव हमेसा से महत्पूर्ण और औचित्य पूर्ण होते हैं. मैं भी आप से सहमत हूँ. परन्तु हिंदी पहले कार्यालयों की अनिवार्य भाषा तो बने. दुरुहता को सरलता में बदलना उतना कहीं नहीं. जब इंग्लिश के पोषकों के पास विकल्प ही नहीं होगा तो हिंदी वे अपने आप सरल बनने का प्रयास करेंग , कठिन हिंदी उनके पाले पड़ेगी ही नहीं. बात पहले स्वीकार्यता की हो. सुझाव सर आँखों पर. प्रणामस्वीकार करें.

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