Monday, June 28, 2010

स्त्री-पुरुष विमर्श

"पुरुष है कुतूहल और प्रश्न, और स्त्री विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान. पुरुष के प्रत्येक बातों का उत्तर देने के लिये वह प्रस्तुत है. उसके कुतुहल, उसके अभाओं को परिपूर्ण करने का उष्ण प्रयत्न और शीतल उपचार. अभागा मनुष्य संतुष्ट है बच्चों के समान. पुरुष ने कहा, 'क' स्त्री ने अर्थ लगा लिया - कौवा, बस वह रहने लगा."
- जयशंकर प्रसाद

"प्रत्येक पुरुष के लिए स्त्री एक कविता है. कविता उसके सूने दिलों में संगीत भरती है. स्त्री भी उसके ऊबे हुए मन को बहलाती है. पुरुष जब जीवन की सूखी चट्टानों पर चढ़ता - चढ़ता थक जाता है, तब सोचता है - चलो, थोडा मन बहलाव कर लें. स्त्री पर अपना सारा प्यार, अपने सारे अरमान निछावर कर देता है, मानो दुनिया में और कुछ हो ही न और उस के बाद जब चांदनी बीत जाती है, जब कविता नीरव हो जाती है, तब पुरुषों को चट्टाने फिर बुलाती हैं और वह ऐसे भागता है मानो पिंजरे से छूटा हुआ पंछी और स्त्री? स्त्री के लिया वही अँधेरा, फिर वही सूनापन."
- जगदीश चन्द्र माथुर


"पुरुष पानी है और स्त्री गूंगी माटी. पानी में इच्छा जगती है मूर्ति रचने के लिए. यही रचना इच्छा ही उस गूंगी माटी को वाणी और गति दे देती है. शायद इसे ही हमारे यहाँ पुरुष और प्रकृति का नाम दिया गया है - ब्रह्म और माया. पर ये हैं दोनों एक. पानी और मिटटी एक मूर्ति से अलग कैसे हो सकते हैं? एक प्रेरणा है, एक रचना है और दोनों एकाकार हैं - एक हैं. दुर्भाग्य उस दिन शुरु हुआ जब पुरुष ने कहा, 'स्त्री! तू श्रद्धा है, देवी है मैं हूँ - 'ब्रह्मा, मनु और कर्मकार, रचनाकार'. अर्थात स्त्री महज जन्म और पालन के अलावा जगत के सारे कर्मों, व्यापारों, रचनाओं से बिलकुल दूर कर दी गयी. पुरुष जो कुछ भी करे, स्त्री उसे श्रद्धा से स्वीकारे, इससे ज्यादा अपमान पुरुष और क्या कर सकता था? और इससे ज्यादा नुकसान मानवता का और क्या हो सकता था?"
- लक्ष्मी नारायण लाल.


"स्त्रियों का मुख्य कर्तव्य है कि वे अपने सौन्दर्य द्वारा पुरुषो में जीवन का संचार करे, क्योकि पुरुष तभी सद्गुण प्राप्त कर सकते है, जब वे रमणी के अनंत सौन्दर्य पर निछावर होकर उसके व्यक्तित्व में अपनेआपको पूर्णतया अन्तर्हित कर देते हैं."
- स्वेट मार्डेन

"स्त्री ने एक एक करके अपने बहुत से अधिकार इसलिए खो दिए कि वह पुरुष पर आधिपत्य चाहती रही है. इसमें वह उतनी ही स्वार्थी है जितना कि पुरुष जो नारी पर पूर्ण अधिकार चाहता है, परस्पर स्नेह नहीं. जैसे एक द्वंद्व है, जैसे एक मज़बूरी है कि दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते".
- डॉ. रांगेय राघव

"द्विविधा में बंधी हुई स्त्री कभी किसी भी पुरुष को बल नहीं दे सकती. वह कभी एक भाव में रहेगी और कभी दूसरे. एकनिष्ठ सती ही अपने पुरुष को बल प्रदान कर सकती है."
- अमृतलाल नागर

"वास्तव में स्त्रियाँ जल के सामान हैं जो शांत रहने पर शीतल होती हैं पर जब जल में तूफ़ान आता है , तब वह ऐसा भयंकर हो जाता है कि बड़े बड़े जहाज भी टुकड़े- टुकड़े हो जाते हैं."
- आचार्य चतुरसेन

"स्त्री का ह्रदय एक एक विचित्र वस्तु है. वह आज प्यार करती है, कल दुत्कार देती है. प्यार के लिए स्त्री सबकुछ करने को तैयार हो जाती है, परन्तु प्रतिकार के लिए उससे भी अधिक भयानक कर्म कर बैठती है."
- सुदर्शन


3 comments:

  1. ये एक ऐसा विषय है जिस पर सबके विचार अलग ही होंगे…………फिर भी काफ़ी अच्छे विचार प्रस्तुत किये।

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  2. Men and women both are human beings who can dream, desire and think.

    It's sad to see that people view them in different lights.

    We posses same emotions as men.

    It's not a duty of a woman to lure a man by her beauty. It is in fact the misuse of her beauty.

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